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________________ ३०२ अणुओगदाराई नयाणं आयभावे वसइ। से तं वसहिदिळंतेणं॥ व्यक्ति जिस स्थान में, जब निवास करता है उसे उसमें रहनेवाला मानता है। इसी प्रकार व्यवहारनय भी नैगमनय की भांति वास को मानता है। संग्रहनय बिछौने पर लेटे हुए व्यक्ति को ही वास करने वाला मानता है। ऋजुसूत्रनय व्यक्ति जितने आकाश प्रदेशों में अवगाहन किए हुए होता है, उनमें वास करने वाला मानता है। तीन शब्द नयों की दृष्टि में व्यक्ति आत्मभाव [अपने स्वरूप] में रहता है । वह वसति दृष्टान्त के द्वारा प्रतिपादित नय प्रमाण है। ५५७. से कि तं पएसदिट्ठतेणं? अथ किं तत् प्रदेशदृष्टान्तेन ? पएसविट्ठतेणं- नेगमो भणति- प्रदेशदृष्टान्तेन नैगमः भणतिछण्हं पएसो, तं जहा-धम्मपएसो षण्णां प्रदेशः, तद्यथा-धर्मप्रदेशः अधम्मपएसो आगासपएसो जीव- अधर्मप्रदेश: आकाशप्रदेशः जीवप्रदेशः पएसो खंधपएसो देसपएसो। एवं स्कन्धप्रदेशः देशप्रदेशः । एवं वदन्तं वयंत नेगम संगहो भणति–जं नंगमं संग्रहः भणति-यद् भणसि भणसि छह पएसो तं न भवइ। षण्णां प्रदेशः तन्न भवति । कम्हा? जम्हा जो देसपएसो कस्मात् ? यस्मात् यः देशप्रदेशः सो तस्सेव दव्वस्स, जहा को स तस्यैव द्रव्यस्य, यथा क: दृष्टान्त:? दिटठंतो? दासेण मे खरो कीओ दासेन मे खरः क्रीतः दासोऽपि मे दासो वि मे खरो वि मे, तं मा खरोऽपि मे, तस्मान्मा भण-षण्णां भणाहि-छह पएसो, भणाहि प्रदेशः, भण पञ्चानां प्रदेशः, तद्यथा पंचण्हं पएसो, तं जहा-धम्म- धर्मप्रदेशः अधर्मप्रदेशः आकाशपएसो अधम्मपएसो आगासपएसो प्रदेशः जीवप्रदेशः स्कन्धप्रदेशः। एवं जीवपएसो खंधपएसो। एवं वयंतं वदन्तं संग्रह व्यवहारः भणति-यद् संगहं ववहारो भणति-जं भणसि भणसि पञ्चानां प्रदेशः तन्न भवति । पंचण्हं पएसो तं न भवइ। ५५७. वह प्रदेश दृष्टान्त के द्वारा प्रतिपादित नय प्रमाण क्या है ? प्रदेश दृष्टान्त के द्वारा प्रतिपादित नय प्रमाण-नंगमनय कहता है-"छहों का प्रदेश" जैसे--धर्म का प्रदेश, अधर्म का प्रदेश, आकाश का प्रदेश, जीव का प्रदेश, स्कन्ध का प्रदेश और देश का प्रदेश । नैगमनय के ऐसा कहने पर संग्रहनय कहता है-"तुम कहते हो छहों का प्रदेश" वह उचित नहीं है। किसलिए? इसलिए कि जो देश का प्रदेश है वह उसी द्रव्य का है । जैसे कोई दृष्टान्त हैं ? [आचार्य ने कहा-इसका दृष्टांत यह है] मेरे दास ने गधा खरीदा, दास भी मेरा है और गधा भी मेरा है। इसलिए यह मत कहो कि "छहों का प्रदेश" यह कहो कि "पांचों का प्रदेश", जैसे-धर्म का प्रदेश, अधर्म का प्रदेश, आकाश का प्रदेश, जीव का प्रदेश और स्कन्ध का प्रदेश । संग्रहनय के ऐसा कहने पर व्यवहारनय कहता है-तुम जो पांचों का प्रदेश कहते हो वह उचित नहीं है। किसलिए? __यदि पांच मित्रों का कोई सामान्य [सबके अधिकार में] द्रव्य समूह है, जैसे-हिरण्य, सुवर्ण, धन या धान्य । वैसे ही यदि पांचों का प्रदेश सामान्य है तो यह कहना उचित हो सकता है, जैसे - "पांचों का प्रदेश" इसलिए मत कहो “पांचों का प्रदेश" यह कहो, "पांच कम्हा? जइ पंचण्हं गोट्ठियाणं कस्मात् ? यदि पञ्चानां गोष्ठिकेइ दध्वजाए सामण्णे, तं जहा- कानां किञ्चिद् द्रव्यजातं सामान्यं, हिरणे वा सुवण्णे वा धणे वा तद्यथा-हिरण्यं वा सुवर्णं वा धनं धण्णे वा तो जुत्तं वत्तुं जहा पंचण्हं वा धान्यं वा ततो युक्तं वक्तुं यथा पएसो, तं मा भणाहि-पंचण्हं पञ्चानां प्रदेशः, तन्मा भणपएसो, भणाहि-पंचविहो पएसो, पञ्चानां प्रदेशः, भण-पञ्चविधः तं जहा-धम्मपएसो अधम्मपएसो प्रदेशः, तद्यथा-धर्मप्रदेशः अधर्म Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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