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आमुख
समय काल का सूक्ष्मतम विभाग है। प्रस्तुत प्रकरण में समय की बहुत सुन्दर प्रज्ञापना प्राप्त है । काल को गणित और औपमिक इन दो भागों में विभक्त कर सूत्रकार ने काल विषयक व्यापक दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया है । पल्योपम और सागरोपम के प्रयोजन भी बतलाए गए हैं। सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम और सागरोपम के प्रयोजन के प्रसंग में सूत्रकार ने दृष्टिवाद का उल्लेख किया है। [सू० ४४० ] | प्रासंगिक रूप में द्रव्य की चर्चा की है ।
बद्ध और मुक्त शरीर की चर्चा के प्रसङ्ग का टीकाकारों ने विमर्श किया है। हरिभद्र के अनुसार शरीर जीव अजीव उभयरूपात्मक होता है', इसलिए जीव के प्रसंग में उसका वर्णन अप्रासंगिक नहीं है । मलधारी हेमचन्द्र ने इस विषय को और आगे बढ़ाया है।' उनके अनुसार नारक आदि को असंख्येय बतलाया गया है । वह असंख्येय किस प्रमाणवाला है ? यह स्पष्ट नहीं होता । शरीर विचार में उसे स्पष्ट किया है, इसलिए जीव द्रव्य के प्रकरण के अनन्तर शरीर पर विचार किया गया हैं ।
१. अहावृ. पृ० ८७ : कः पुनरस्य प्रस्ताव इति, उच्यते, जीवद्रव्याधिकारस्य प्रक्रान्तत्वात्शरीराणामपि च तदुभयरूपत्वादवसर इति । २. अमवृ. प. १८० : नारकादयोऽसंख्येयादिस्वरूपतः सामान्येन प्रोक्ता विशेषतस्तु तदसंख्येकं कियत्प्रमाणमिति न ज्ञायते, औदारिकादिशरीरविचारे च तत्परिज्ञानं सिद्धयति औदारिकादिशरीरस्वरूपबोधश्च विनेयानां संपद्यते इति चेतसि निधाय जीवाजीवद्रव्यविचारप्रस्तावाच्छरीराणां तदुभयरूपत्वासानि विचारवितुं उपक्रम्यते ।
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