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आमुख
दार्शनिक ग्रन्थों में प्रमाण का प्रयोग ज्ञान अथवा ज्ञान के हेतु के लिए किया गया है। यहां उसका प्रयोग व्यापक अर्थ में हुआ है । मान अथवा मापन के जितने साधन हैं उन सबको प्रमाण कहा गया है । उसके चार प्रकार बतलाए गए हैं-१. द्रव्य प्रमाण २. क्षेत्र प्रमाण ३. काल प्रमाण ४. भाव प्रमाण । प्रस्तुत प्रकरण में द्रव्य और क्षेत्र इन दो प्रमाणों का समावेश किया गया है। द्रव्य प्रमाण में तत्कालीन समाज में प्रचलित मान, उन्मान आदि मानदण्डों की व्यावहारिक जानकारी मिलती है। यद्यपि वर्तमान में दण्ड, धनुष्य, युग आदि का मापन के लिए कोई प्रयोग नहीं हो रहा है फिर भी प्राचीन ग्रन्थों के अध्ययन के लिए इनका बहुत उपयोग है। क्षेत्र प्रमाण में तीन अंगुल, तीन प्रकार के पुरुष तथा सूक्ष्म और व्यावहारिक परमाणु का प्रतिपादन बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। वर्तमान विज्ञान सम्मत अणु और परमाणु के भेद का सूक्ष्म और व्यावहारिक परमाणु से तुलनात्मक दृष्टि से अध्ययन किया जा सकता है।
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