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आमुख
प्रस्तुत प्रकरण संगीत, काव्यरस, व्याकरण, ज्योतिष, आयुर्वेद आदि अनेक विषयों का समुच्चय है। स्वर प्रकरण स्थानाङ्ग में भी है । आर्यरक्षित ने स्थानाङ्ग से लिया अथवा संकलन काल में देवधिगणि ने अनुयोगद्वार से उद्धृत कर स्थानाङ्ग में संयोजित किया, यह अनुसंधेय है।
नव रसों में भयानक रस का अस्वीकार और वीडनक रस का स्वीकार काव्यानुशासन की परम्परा से भिन्न है। रसों के उदाहरण में प्रयुक्त गाथाएं सूत्रकार द्वारा रचित हैं अथवा अन्य ग्रन्थों से उद्धृत हैं, यह भी अनुसंधान का विषय है। कुछ विद्वान मानते हैं कि उत्तराध्ययन के १८ अध्ययन प्राचीन हैं उत्तरवर्ती १८ अध्ययन अर्वाचीन हैं। यहां जन्नइज्ज (२५ वां अध्ययन) का उल्लेख है । इससे ज्ञात होता है कि उत्तरवर्ती अध्ययन अनुयोगद्वार की रचना से पूर्ववर्ती हैं। इस प्रकार प्रस्तुत प्रकरण में अनेक ऐतिहासिक और कृत्तिका नक्षत्र आदि कालगणना विषयक तथ्यों का उल्लेख है।
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