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आमुख
हमारे व्यवहार का प्रमुख अङ्ग है नामकरण । उसके बिना उपोद्घात की चर्चा आगे नहीं बढती । प्रत्येक पदार्थ की पहचान नाम से होती है । नाम एक अक्षरवाले तथा अनेक अक्षरवाले दोनों प्रकार के होते हैं। प्रस्तुत प्रकरण में सूत्रकार ने संस्कृत व्याकरण का प्रयोग किया है । "ह्रीः श्रीः धीः " इनमें विसर्ग का प्रयोग है, प्राकृत में विसर्ग का प्रयोग नहीं होता है। नाम के लिंग का निर्देश भी किया गया है । उसे लिङ्गानुशासन का संक्षिप्त रूप कहा जा सकता है । नाम के पांच प्रकारों का संबंध भी व्याकरण से है, जैसे-नामिक नेपालि आख्यातिक औपसगिक और मिथ (२७०) अनुयोगद्वार में दर्शन, व्याकरण, संगीत, साहित्य आदि अनेक विषयों का संस्पर्श है । यह किसी विषय का प्रतिपादक आगम नहीं है किन्तु पूर्वग्रन्थों की व्याख्या का प्रतिपादक आगम है इसलिए इसमें ऐसा होना स्वाभाविक है ।
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