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आमुख
आनुपूर्वी की निरूपण पद्धति प्रायः एक जैसी है । द्रव्य, क्षेत्र और काल से सन्दर्भ बदलते हैं फलतः कुछ विषय बदल जाते हैं । कालानुपूर्वी में काल के सूक्ष्मतम विभाग से सर्वाध्वा तक का निरूपण है । उसके तीन विभाग हैं। शीर्षप्रहेलिका तक का कालविभाग संख्यातकाल है । पल्योपम, सागरोपम, उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी- यह असंख्यात काल है। पुद्गलपरिवर्त, अतीतकाल, अनागतकाल और सर्वकाल - यह अनन्त काल है ।
कालानुपूर्वी में एक समय की स्थिति वाले, दो समय की स्थितिवाले, तीन समय से लेकर असंख्यात समय की स्थिति वाले द्रव्यों की पूर्वानुपूर्वी पश्चानुपूर्वी और अनानुपूर्वी बतलाई गई है। समय सूक्ष्मतम काल है सर्वाच्या उत्कृष्टतम काल है। इनमें पूर्वानुपूर्वी और पश्चानुपूर्वी की योजना की गई है। मुख्यतः क्षेत्र और काल द्रव्य से संयुक्त होकर ही प्रज्ञापनीय बनते हैं।
आनुपूर्वी के प्रकरण में उत्कीर्तन, गणना, संस्थान और सामाचारी - ये उदाहरण के रूप में प्रस्तुत हैं। नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव - ये छह निक्षेप पद्धति के साथ जुड़े हुए हैं।
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