SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आमुख वैकल्पिक रूप में उपक्रम के छः प्रकार बतलाए गए हैं। उनमें पहला प्रकार है आनुपूर्वी । इसका संबंध क्रम व्यवस्था से है । य की संरचना में क्रम और व्युत्क्रम का महत्त्वपूर्ण योग है । यौगिक द्रव्यों के अनेक विकल्प इसी क्रम व्यवस्था के आधार पर बनते । आनुपूर्वी के दस प्रकार हैं। प्रस्तुत प्रकरण में नामानुपूर्वी स्थापनानुपूर्वी और द्रव्यानुपूर्वी का निरूपण है । द्रव्यानुपूर्वी के औपfant और अनौपनिधिकी इन दो विकल्पों का विमर्श किया गया है । अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी के पांच प्रकार हैं । उनमें भङ्गमुत्कीर्तन और भङ्गोपदर्शन पूर्वश्रुत के अध्ययन की पद्धति पर प्रकाश डालते हैं । पूर्वश्रुत का मुख्य विषय है द्रव्यानुयोग । द्रव्य की रचना में दो परमाणु का स्कन्ध, तीन परमाणु का स्कन्ध यावत् अनन्त परमाणु का स्कन्ध होता है। एक परमाणु में क्रम रचना हीं होती इसलिए अनानुपूर्वी होती है। दो परमाणुओं से निष्पन्न स्कन्ध में क्रम नहीं होता इसलिए आनुपूर्वी नहीं, अक्रम नहीं होता लिए अवक्तव्य है । तीन परमाणु से निष्पन्न स्कन्ध में क्रम व्यवस्था होती है इसलिए वह आनुपूर्वी है । भङ्गसमुत्कीर्तन व भङ्गोपन पर नय दृष्टि से विचार किया गया है। Jain Education International 7 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy