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उत्तरज्झयणाणि
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अध्ययन ३० : श्लोक २७ टि०६
(४) शयन योग
बृहत्कल्प, (५१९-३०) (क) ऊर्ध्व शयन-ऊंचा होकर सोना।
समपादिका, कायोत्सर्ग, प्रतिमासन, निषद्या, उत्कटुकासन, (ख) लगंड शयन-वक्र काष्ठ की भांति एड़ियों और वीरासन, दण्डासन, लगण्डशयन, अधोमुखासन, उत्तानशयन,
शिर को भूमि से सटा कर शेष शरीर को ऊपर आम्रकुब्जिका और एकपार्श्वशयन। उठा कर सोना अथवा पीठ को भूमि से सटा कर दशाश्रुतस्कन्ध, (७) शेष शरीर को ऊपर उठा कर सोना।
उत्तानशयन, पार्श्वशयन, निषद्या, दण्डायतासन, लगण्डशयन, (ग) उत्तान शयन-सीधा लेटना।
उत्कटुकासन, कायोत्सर्ग, गो-दोहिकासन, वीरासन और आमकुब्जासन। (घ) अवमस्तक शयन-औंधा लेटना।
मूलाराधना (ङ) एकपार्श्वशयन-दाईं या बाईं करवट लेटना।
व्युत्सर्ग, समपाद, एकपाद, गृद्धोड्डीन, पर्यक, निषद्या, (च) मृतक शयन-शवासन।
समपद, गो-दोहिका, उत्कुटिका, मकरमुख, हस्तिशुंडि, गो-निषधा, (५) अपरिकर्म योग
अर्धपर्यडूक, वीरासन, दण्डायतशयन, ऊर्ध्वशयन, लगण्डशयन, (क) अभ्रावकाश शयन-खुले आकाश में सोना। उत्तानशयन, अवमस्तकशयन, एकपार्श्वशयन और मृतकशयन(ख) अनिष्ठीवन-नहीं थूकना।
शवासन। (ग) अकण्डूयन--नहीं खुजलाना ।
ज्ञानार्णव, (२८।१०) (घ) तृण-फलक-शिला-भूमि-शय्या-घास, काठ के पर्यङ्कासन, अर्द्धपर्यङ्कासन, वज्रासन, वीरासन, फलक, शिला और भूमि पर सोना।
सुखासन, पद्मासन और कायोत्सर्ग। (ङ) केश लोच-बालों को हाथ से नोंचना।
योगशास्त्र (४।१२४) (च) अभ्युत्थान-रात को जागना।
पर्यकासन, वीरासन, वज्रासन, पद्मासन, भद्रसन, (छ) अस्नान-स्नान नहीं करना।
दण्डासन, उत्कटुकासन, गोदोहिकासन और कायोत्सर्ग। (ज) अदन्तधावन-दतौन नहीं करना।
प्रवचनसारोद्वार, (५८३-५८५) (झ) शीत-उष्ण, आतापना, गर्मी और धूप सहन करना।'
उत्तानशयन, पार्श्वशयन, निषद्या, कायोत्सर्ग, उत्कटुक, स्थान (आसन) तालिका
लगण्डशयन, दण्डायतासन, गोदोहिकासन, वीरासन और उत्तराध्ययन, स्थानांग और औपपातिक के स्थान-शब्द
आम्रकुब्ज। का विवरण मूलाराधना के स्थान-योग में मिलता है। स्थानांग अमितगति श्रावकाचार ॥ में ७, औपपातिक में ८, बृहत्कल्प में १२ और दशाश्रुतस्कन्ध
पद्मासन, पर्यड्कासन, वीरासन, उत्कटुकासन और गवासन। में १० आसनों का उल्लेख मिलता है। मूलाराधना में इक्कीस,
निषद्या के भेद निम्न प्रकार उपलब्ध हैं : ज्ञानर्णव में सात, योगशास्त्र में नौ, प्रवचनसारोद्धार में दस
स्थानङ्ग (५ १५०) बृहत्कल्प भाष्य (गाथा ५६५३) तथा अमितगति श्रावकाचार में पांच आसनों का उल्लेख है
उत्कटुका
समपादपुता स्थानांग, (७४९)
गो-दोहिका
गो-निषधिका कायोत्सर्ग, उत्कटुकासन, प्रतिमासन, वीरासन, निषद्या,
समपादपुता
हस्तिशुण्डिका दण्डायतासन और लगण्डशयनासन।
पर्यङ्का
पर्यङ्का औपपातिक, (३६)
अर्धपर्यङ्का
अर्धपर्यङ्का कायोत्सर्ग, उत्कटुकासन, प्रतिमासन, वीरासन, निषद्या,
औपपातिक (सूत्र ३६, वृत्ति पृ० ७५, ७६) में दण्डायत, लगण्डशयन और आतापनासन।
आतापनासन के भेदोपभेद इस प्रकार मिलते हैं :
आतापनासन
निषन्न आतापना
अनिष्पन्न अतापना
ऊर्ध्वस्थित आतापना
अधोमुखशयन पार्श्वशयन उत्तानशयन गो-दोहिकासन उत्कटुकासन पर्यकासन हस्तिशौण्डिका एकपादिका समपादिका
१. मूलाराधना, ३२२६२२७।
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