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उत्तरज्झयणाणि
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अध्ययन ३० : श्लोक १२-१३ टि० ४
जाता है। सूत्रकृतांग के अनुसार शारीरिक बाधा उत्पन्न होने आदमी को मरना ही हो अथवा मालूम हो जाए कि मरना है, या न होने पर भी अनशन किया जाता है।'
तो खाए हुए से उपवास करके मरना कहीं बढ़कर है अथवा अनशन का हेतु शरीर के प्रति निर्ममत्व है। जब तक इन दोनों का मुकाबला ही उचित नहीं है। मैं नहीं जानता कि शरीर-ममत्व होता है, तब तक मनुष्य मृत्यु से भयभीत रहता खाए हुए मरने से वृत्ति कैसी रहती होगी पर जान पड़ता है है और जब वह शरीर-ममत्व से मुक्त होता है, तब मृत्यु के कि अच्छी तो नहीं रहती होगी और उपवास में वृत्ति का क्या भय से भी मुक्त हो जाता है। अनशन को देह-निर्ममत्व या पूछना है? जान पड़ता है ब्रह्मानन्द में लीन है।" अभय की साधना का विशिष्ट प्रकार कहा जा सकता है। मृत्यु तात्कालिक व्याघात या बाधा उत्पन्न न होने पर किया अनशन का उद्देश्य नहीं, किंतु उसका गौण परिणाम है। उसका जाने वाला अनशन संलेखना-पूर्वक होता है। मुख्य परिणाम है-आत्म-लीनता। इसी प्रकार महात्मा गांधी आगम-सूत्रों में मरण एवं अनशन के भेद इस प्रकार का एक अनुभव है-“मुझे मालूम होता है कि किसी कारण से हैं(१) उत्तरज्झयणाणि, ३०९-१३ :
अनशन
इत्वरिक
मरणकालांत
श्रेणितप
प्रतरतप
घनतप
वर्गतप
वर्ग-वर्गतप
प्रकीर्णतप
सविचार
अविचार
सपरिकर्म
अपरिकर्म
निर्हारि
अनियरि
(२) ओवाइयं, सूत्र ३२
अनशन
___ इत्वरिक
इत्वरिक
यावत्कथिक
चतुर्थ भक्त षष्ठ भक्त अष्टम भक्त दशम भक्त द्वादश भक्त चतुर्दश भक्त षोडश भक्त | पादपोपगमन भक्त-प्रत्याख्यान
T अर्धमासिक भक्त मासिक भक्त द्वैमासिक भक्त त्रैमासिक भक्त चतुरमासिक भक्त
पञ्चमासिक भक्त
छहमासिक भक्त
व्याघात सहित निर्व्याघात
(नियमतः अप्रतिकर्म)
व्याघात सहित निर्व्याघात (नियमतः सप्रतिकर्म)
१. (क) सूयगडो, २।२६७ : ते णं एतेणं विहारेणं विहरमाणा बहूई
वासाई सामण्णपरियार्ग पाउणंति, पाउणित्ता, आबाहसि उप्पण्णसि वा अणुप्पण्णंसि वा बहूई भत्ताई पच्चक्खंति, पच्चक्खित्ता बहूई भत्ताई अणसणाए छेदेति।
(ख) वही, २।२७३ : ते णं एयारवेणं विहरमाणा बहूई वासाई
समणोवासगपरियागं पाउणंति, पाउणित्ता आबाहसि उप्पण्णंसि वा अणुप्पण्णंसि वा बहूई भत्ताई पच्चक्खंति, पच्चक्खित्ता बहूई
भत्ताइं अणसणाए छेदेति। २. उपवास से लाभ, पृ० ११७।
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