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________________ मूल १. सुयं मे आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु सम्मत्तपरक्कमे नाम अज्झयणे समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइए, जं सम्मं सद्दहित्ता पत्तियाइत्ता रोयइत्ता फासइत्ता पालइत्ता तीरइत्ता किड्डत्ता सोहइत्ता आराहइत्ता आणाए अणुपालइत्ता बहवे जीवा सिद्धांत बुज्नति मुच्यति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति । तस्स णं अयमट्ठे एवमाहिज्जइ तं जहा संवेगे १ निव्वेए २ एगूणतीसइमं अज्झयणं उनतीसवां अध्ययन सम्मत्तपरक्कमे : सम्यक्त्व-पराक्रम धम्मसद्धा ३ गुरुसाहम्मियसुस्सूसणया ४ आलोयणया ५ निंदणया ६ गरहणया ७ सामाइए ८ चउव्वीसत्थ वंदणए १० पडिक्कमणे ११ काउस्सग्गे १२ पच्चक्खाणे १३ थवथुइमंगले १४ कालपडिलेहणया १५ पायच्छित्तकरणे १६ खमावणया १७ सज्झाए १८ वायणया १६ पडिपुच्छणया २० परिचणया २१ अणुप्पेहा २२ Jain Education International संस्कृत छाया श्रुतं मया आयुष्मन् ! तेन भगवतैवमाख्यातम् इह खलु सम्यक्वपराक्रमं नामाध्ययनं श्रमणेन भगवता महावीरेण काश्यपेन प्रवेदितम्, यत् सम्यक् श्रद्धाय, प्रतीत्य, रोचयित्वा स्पृष्ट्वा, पालयित्वा, तीरयित्वा, कीर्तयित्वा, शोधयित्वा, आराध्य आज्ञया अनुपाल्य बहवो जीवा सिध्यन्ति, 'मुज्झति' मुख्यन्ते, परिनियन्ति, सर्वदुःखानामन्तं कुर्वन्ति । तस्य अयमर्थः एवमाख्यायते, तद् यथा संवेग: 9 निर्वेदः २ धर्मश्रद्धा ३ गुरुसाधर्मिकशुश्रूषणम् आलोचनम् ५ निन्दनम् ६ गर्हणम् ७ सामायिकम्प चतुर्विंशतिस्तवः ६ वन्दनम् १० प्रतिक्रमणम् ११ कायोत्सर्गः १२ प्रत्याख्यानम् १३ स्तवस्तुतिमङ्गलम् १४ कालप्रतिलेखनम् १५ प्रायश्चित्तकरणम् १६ क्षमापनम् १७ स्वाध्यायः १८ वाचनम् १६ प्रतिप्रच्छनम् २० परिवर्तनम् २१ अनुप्रेक्षा २२ हिन्दी अनुवाद आयुष्मन् ! मैंने सुना है भगवान् ने इस प्रकार कहा है— इस निर्ग्रन्थ-प्रवचन में कश्यप गोत्री श्रमण भगवान् महावीर ने सम्यक्त्व - पराक्रम नाम का अध्ययन कहा है, जिस पर भलीभांति श्रद्धा कर, प्रतीति कर, रुचि रख कर, जिसके विषय का स्पर्श करे, स्मृति में रख कर, समग्ररूप में हस्तगत कर गुरु को पठित पाठ का निवेदन कर, गुरु के समीप उच्चारण की शुद्धि कर, सही अर्थ का बोध प्राप्त कर और अर्हत की आज्ञा के अनुसार अनुपालन कर बहुत जीव सिद्ध होते हैं, प्रशांत होते हैं, मुक्त होते हैं, परिनिर्वृत होते हैं और सब दुःखों का अन्त करते हैं। सम्यक्त्व - पराक्रम का अर्थ इस प्रकार कहा गया है। जैसे— संवेग १ निर्वेद २ धर्मश्रद्धा ३ गुरु और साधर्मिक की शुश्रूषा ४ आलोचना ५ निन्दा ६ गर्दा ७ सामायिक प चतुर्विंशतिस्तव ६ वन्दन १० प्रतिक्रमण ११ कायोत्सर्ग १२ प्रत्याख्यान १३ स्तवस्तुतिमंगल १४ कालप्रतिलेखन १५ प्रायश्चित्तकरण १६ क्षामणा १७ स्वाध्याय १८ वाचना १६ प्रतिप्रच्छना २० परावर्त्तना २१ अनुप्रेक्षा २२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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