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________________ सम्यक्त्व-पराक्रम (३) तीर्थ धर्म का अवलम्बन-धर्म-परम्परा की अविच्छिन्नता । (४) चरम साध्य की उपलब्धि । (सू० २०) प्रतिप्रश्न के परिणाम : (१) सूत्र, अर्थ और तदुभय की विशुद्धि - संशय, विपर्यय आदि का निराकरण । (२) काङ्क्षा मोहनीय कर्म का विच्छेद (सू० २१) परावर्त्तन के परिणाम : (१) स्मृत की पुष्टि और विस्मृत की याद । (२) व्यंजन - लब्धि — पदानुसारिणी बुद्धि का विकास । (सू० २२) अनुप्रेक्षा के परिणाम : (१) दृढ़ कर्म का शिथिलीकरण, दीर्घकालीन कर्म-स्थिति का संक्षेपीकरण और तीव्र अनुभाव का मन्दीकरण । (२) असातवेदनीय कर्म का अनुपचय । (३) संसार से शीघ्र मुक्ति (सू० २३) धर्म-कथा के परिणाम : (१) निर्जरा । (२) प्रवचन- धर्म - शासन की प्रभावना । (३) कुशल कर्मों का अर्जन (सू० २४) श्रुताराधना के परिणाम : (१) अज्ञान का क्षय । (२) क्लेश - हानि । ( सू० २४ ) मन को एकाग्र करने का परिणाम : (१) चित्त निरोध (सू० २६) संयम का परिणाम : ४६७ (१) अनाश्रव-आश्रव-निरोध। (सू० २७) तप का परिणाम : (१) व्यवदान - कर्म-निर्जरा (०२०) व्यवदान के परिणाम : (१) अक्रिया — प्रवृत्ति निरोध । (२) सर्व दुःख मुक्ति (सू० २६) सुख-स्पृहा त्यागने के परिणाम : (१) अनुत्सुक मनोभाव । (२) अनुकम्पा पूर्ण मनोभाव । (३) प्रशांतता । 1 ( ४ ) शोक - रहित मनोभाव (५) चारित्र को विकृत करने वाले मोह का विलय । (सू० ३०) अप्रतिबद्धता मानसिक अनासक्ति के परिणाम : (१) निःसंगता - निर्लेपता । (२) चित्त की एकाग्रता । (३) प्रतिपल अनासक्ति (सू० ३१ ) Jain Education International अध्ययन २६ : आमुख विविक्त शयनासन के परिणाम : (१) चारित्र की सुरक्षा । (२) विविक्त- आहार-विकृति-रहित भोजन । (३) निस्पृहता। (४) एकांत रमण । (५) कर्म - ग्रन्थि का मोक्ष । (सू० ३२ ) विनिवर्त्तना --- विषयों से मन को संहृत करने के परिणाम : (१) पापाचरण के प्रति अनुत्साह । (२) अशुभ संस्कारों के विलय का प्रयत्न । (३) संसार की पार - प्राप्ति । (सू० ३३) संभोज (मंडली - भोजन) प्रत्याख्यान के परिणाम : (१) परावलम्बन से मुक्ति । (२) प्रवृत्तियों का मोक्ष की ओर केन्द्रीकरण । (३) अपने लाभ में सन्तुष्टि और परलाभ की ओर निस्पृहता । (४) दूसरी सुख - शय्या की प्राप्ति । (सू० ३४ ) उपधि- प्रत्याख्यान के परिणाम : (१) प्रतिलेखना आदि के द्वारा होने वाली स्वाध्याय की क्षति से बचाव । ( २ ) वस्त्र की अभिलाषा से मुक्ति । (३) उपधि के बिना होने वाले संक्लेश का अभाव । (सू० ३५) आहार- प्रत्याख्यान के परिणाम : (१) जीने के मोह से मुक्ति । (२) आहार के बिना होने वाले संक्लेश का अभाव (सू० ३६) कषाय- प्रत्याख्यान के परिणाम : (१) वीतरागता । ( २ ) सुख - दुःख में सम रहने की स्थिति की उपलब्धि । (सू० ३७) योग-प्रत्याख्यान के परिणाम : (१) स्थिरता । (२) नवीन कर्म का अग्रहण और पूर्वार्जित कर्म का विलय । (सू० ३८) शरीर- प्रत्याख्यान के परिणाम : (१) आत्मा का पूर्णोदय । (२) लोकाग्र स्थिति । (३) परम सुख की प्राप्ति । (सू० ३६ ) सहाय- प्रत्याख्यान के परिणाम : (१) अकेलेपन की प्राप्ति । (२) कलह आदि से मुक्ति । (३) संयम, संवर और समाधि की विशिष्ट उपलब्धि । ( सू० ४० ) भक्त-प्रत्याख्यान, अनशन का परिणाम : For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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