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________________ तेविंसइमं अज्झयणं : तेवीसवां अध्ययन केसिगोयमिज्जं : केशि-गौतमीय संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद पार्श्व' नाम के जिन हुए। वे अर्हन, लोक-पूजित, संबुद्धात्मा, सर्वज्ञ, धर्म-तीर्थ के प्रवर्तक और वीतराग जिनः पार्श्व इति नाम्ना अर्हन् लोकपूजितः। संबुद्धात्मा च सर्वज्ञः धर्मतीर्थकरो जिनः।। थे। तस्य लोकप्रदीपस्य आसीच्छिष्यो महायशाः । केशी कुमार श्रमणः विद्याचरणपारगः।। लोक को प्रकाशित करने वाले उन अर्हत् पार्श्व के केशी नामक शिष्य हुए। वे महान् यशस्वी, विद्या और आचार के पारगामी कुमार-श्रमण थे। अवधिज्ञानश्रुताभ्यां बुद्धः शिष्यसंघसमाकुलः। ग्रामानुग्राम रीयमाण: श्रावस्ती नगरीमागतः।। वे अवधि-ज्ञान और श्रुत-सम्पदा के तत्त्वों को जानते थे। वे शिष्य-संघ से परिवृत हो कर ग्रामानुग्राम विहार करते हुए श्रावस्ती नगरी में आए। उस समय के पार्श्व में 'तिंदुक' उद्यान था। वहां जीव-जन्तु रहित शय्या (मकान) और संस्तार (आसन) लेकर वे ठहर गए। मूल १. जिणे पासे त्ति नामेण अरहा लोगपूइओ। संबुद्धप्पा य सव्वण्ण धम्मतित्थयरे जिणे।। २. तस्स लोगपईवस्स आसि सीसे महायसे। केसी कुमारसमणे विज्जाचरणपारगे।। ३. ओहिनाणसुए बुद्धे सीससंघसमाउले। गामाणुगामं रीयंते सावत्थि नगरिमागए।। ४. तिंदूयं नाम उज्जाणं तम्मी नगरमंडले। फासुए सिज्जसंथारे तत्थ वासमुवागए।। अह तेणेव कालेणं धम्मतित्थयरे जिणे। भगवं वद्धमाणो त्ति सव्वलोगम्मि विस्सुए।। तस्स लोगपईवस्स आसि सीसे महायसे। भगवं गोयमे नाम विज्जाचरणपारगे।। ७. बारसंगविऊ बुद्धे सीससंघसमाउले। गामाणुगामं रीयंते से वि सावत्थिमानए।। कोट्ठगं नाम उज्जाणं तम्मी नयरमंडले। फासुए सिज्जसंथारे तत्थ वासमुवागए।। उस समय भगवान् वर्धमान विहार कर रहे थे। वे धर्म-तीर्थ के प्रवर्तक, जिन और समूचे लोक में विश्रुत थे। तिन्दुकं नामोद्यानं तस्मिन् नगरमण्डले। स्पशुके शय्यासंस्तारे तत्र वासमुपागतः ।। अथ तस्मिन्नेव काले धर्मतीर्थकरो जिनः। भगवान् वर्धमान इति सर्वलोके विश्रुतः।। तस्य लोकप्रदीपस्य आसीच्छिष्यो महायशाः। भगवान् गौतमो नाम विद्याचरणपारगः।। द्वादशांगविद् बुद्धः शिष्यसंघसमाकुलः। ग्रामानुग्रामं रीयमाण: सोऽपि श्रीवस्तीमागतः ।। कोष्ठकं नामोद्यानं तस्मिन् नगरमण्डले। स्पशुके शय्यासंस्तारे तत्र वासमुपागतः।। लोक को प्रकाशित करने वाले उन भगवान् वर्धमान के गौतम नाम के शिष्य थे। वे महान् यशस्वी, भगवान् तथा विद्या और आचार के पारगामी थे। वे बारह अंगों को जानने वाले और बुद्ध थे। शिष्य संध से परिवृत होकर ग्रामानुग्राम विहार करते हुए वे भी श्रावस्ती में आ गए। ८. को उस नगर के पार्श्व-भाग में 'कोष्ठक' उद्यान था। वहां जीव-जन्तु रहित शय्या और संस्तार लेकर वे ठहर गए। dain Education Intermational Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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