________________
समुद्रपालीय
३५३
अध्ययन २१ :श्लोक २२,२४ टि० २६,३०
आसक्ति के उपलेप से रहित स्थानों को निरुपलेप माना है।' ३०. निश्चल (निरंगणे) २९. विविक्त लयनों-एकान्त स्थानों का (विवित्तलयणाइ) 'निरंगण' शब्द के दो संस्कृत रूप किए जा सकते हैं
वृत्तिकार ने इसका अर्थ-स्त्री आदि रहित उपाश्रय निरंगण और निरञ्जन। निरंगण का अर्थ है—लेप रहित। किया है। लयन का मुख्य अर्थ 'पहाड़ों में कुरेदा हुआ गृह' निरंजन का एक अर्थ है—गति रहित, निश्चल और दूसरा (गुफा) होता है। 'लेणी' शब्द इसी 'लयण' या 'लेण' का अर्थ है-देह अथवा अभिव्यक्ति रहित। प्राकृत में 'जकार' को अपभ्रंश है।
'गकारादेश' होता है। इसलिए 'निरंजन' का 'निरंगण' रूप बन सकता है।
१. बृहद्वृत्ति, पत्र ४८७ : निरुपलेपानि-अभिष्वंगरूपोपलेपवर्जितानि। २. वही, पत्र ४८७ : विविक्तलयनानि स्यादिविरहितोपाश्रयरूपाणि
विविक्तत्वादेव च।
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org