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(३४) बीसवां अध्ययन : महानिर्ग्रन्थीय (अनाथता और सनाथता)
पृ० ३२९-३४३ श्लोक १-८ अध्ययन का उपक्रम। श्रेणिक का मण्डिकुक्षि-उद्यान में
को दूर करने में असमर्थता। धर्म की शरण, रोगोपशमन, गमन । मुनि को देख कर विस्मय और श्रामण्य-स्वीकार
अनगार-वृत्ति का स्वीकार और सनाथता। के बारे में प्रश्न।
३६,३७ आत्म-कर्तृत्व का उद्बोधन। ६ मुनि द्वारा अपनी अनाथता का उल्लेख।
३८-५० मुनि-धर्म से विपरीत आचरण करना--दूसरी अनाथता। १०,११ राजा द्वारा स्वयं नाथ होने का प्रस्ताव ।
५१-५३ मेधावी पुरुष को महानिर्ग्रन्थ के मार्ग पर चलने की १२ मुनि द्वारा राजा की अनाथता का उल्लेख।
प्रेरणा। १३-१५ राजा द्वारा आश्चर्यभरी व्याकुलता।
५४-५६ अनाथ की व्याख्या से श्रेणिक को परम तोष। मुनि की १६ अनाथता और सनाथता के बारे में जिज्ञासा ।
हार्दिक स्तवना और धर्म में अनुरक्ति। १७-३५ मुनि द्वारा अपनी आत्म-कथा। परिवार द्वारा चक्षु-वेदना ६० मुनि का स्वतंत्र-भाव से विहार। इक्कीसवां अध्ययन : समुद्रपालीय (वध्यचोर के दर्शन से संबोधि)
पृ० ३४५-३५३ श्लोक १-६ पालित की समुद्र-यात्रा। समुद्रपाल का जन्म और
१५ सम-भाव की साधना का उपदेश। विद्या अध्ययन।
१६ मन के अभिप्रायों पर अनुशासन तथा उपसर्गों को ७ रूपिणी के साथ विवाह
सहने का उपदेश। ८-१० वृद्ध को देखकर संवेग-प्राप्ति । कर्मों का विपाक-चिन्तन १७-१६ परीषहों की उपस्थिति में समता-भाव का उपदेश । और साधुत्व-स्वीकार।
२० पूजा में उन्नत और गर्दा में अवनत न होने का ११ मुनि को पर्याय-धर्म, व्रत, शील तथा परीषहों में
उपदेश। अभिरुचि लेने का उपदेश।
२१ संयमवान् मुनि की परमार्थ-पदों में स्थिति। १२ पंच महाव्रत व उनके आचरण का उपदेश।
२२ ऋषियों द्वारा आचीर्ण स्थानों के सेवन का उपदेश । १३ दयानुकम्पी होने का उपदेश।
२३ अनुत्तर ज्ञानधारी मुनि की सूर्य की तरह दीप्तिमत्ता। १४ अपने बलाबल को तौल कर कालोचित कार्य करते
२४ समुद्रपाल मुनि की संयम में निश्चलता से हुए विहरण का उपदेश ।
अपुनरागम-गति की प्राप्ति। बावीसवां अध्ययन : रथनेमीय (पुनरुत्थान)
पृ० ३५४-३६७ श्लोक १,२ वसुदेव राजा के परिवार का परिचय।
२८ अरिष्टनेमि की दीक्षा की बात सुनकर राजीमती की ३,४ समुद्रविजय राजा के परिवार का परिचय। अरिष्टनेमि
शोक-निमग्नता। का जन्म।
२६-३१ राजीमती का प्रव्रजित होने का निश्चय और केश-लुंचन। ५,६ अरिष्टनेमि का शरीर-परिचय और जाति-परिचय।
वासुदेव का आशीर्वाद। केशव द्वारा उसके लिए राजीमती की मांग।
३२ राजीमती द्वारा अनेक स्वजन-परिजनों की दीक्षा। ७ राजीमती का स्वभाव-परिचय।।
३३ रैवतक पर्वत पर जाते समय राजीमती का वर्षा से ८ उग्रसेन द्वारा केशव की मांग स्वीकार।
भीगने के कारण गुफा में ठहरना। ६-१६ अरिष्टनेमि के विवाह की शोभा यात्रा। बाड़ों और ३४ वस्त्रों को सुखाना। रथनेमि का राजीमती को यथाजात पिंजरों में निरुद्ध प्राणियों को देखकर सारथि से प्रश्न ।
(नग्न) रूप में देखकर भग्नचित्त हो जाना। १७ सारथि का उत्तर।
३५ राजीमती का संकुचित होकर बैठना। १८,१६ अरिष्टनेमि का चिन्तन ।
३६-३८ रथनेमि द्वारा आत्म-परिचय और प्रणय- निवेदन। २० सारथि को कुण्डल आदि आभूषणों का दान।
३६-४५ राजीमती द्वारा रथनेमि को विविध प्रकार से उपदेश। २१ अभिनिष्क्रमण की भावना और देवों का आगमन। ४६,४७ रथनेमि का संयम में पुनः स्थिर होना। २२-२७ शिविका में आरूढ़ होकर अरिष्टनेमि का रैवतक पर ४८ राजीमती और रथनेमि को अनुत्तर सिद्धि की प्राप्ति। जाना। केश-लुंचन। वासुदेव द्वारा आशीर्वचन ।
४६ संबुद्ध का कर्तव्य। तेवीसवां अध्ययन : केशि-गौतमीय (केशि और गौतम का संवाद)
पृ० ३६८-३८६ श्लोक १-४ तीर्थकर पार्श्व के शिष्य श्रमण केशि का परिचय।
सन्देह और जिज्ञासाएं। __ श्रावस्ती में आगमन और तिन्दुक उद्यान में स्थिति। १४ केशि और गौतम का परस्पर मिलने का निश्चय। ५-८ भगवान् महावीर के शिष्य गौतम का परिचय। श्रावस्ती १५-१७ गौतम का तिन्दुक-वन में आगमन। केशि द्वारा गौतम में आगमन और कोष्ठक उद्यान में स्थिति।
का आदर-सत्कार और आसन-प्रदान। ९-१३ दोनों के शिष्य-समुदाय में एक-दूसरे को देखकर अनेक १८ केशी और गौतम की चन्द्र और सूर्य से तुलना।
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