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अठारहवां अध्ययन : संजयीय (जैन-शासन की परम्परा का संकलन )
श्लोक १३ संजय राजा का परिचय शिकार के लिए राजा का
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वन-गमण ।
४ केशर उद्यान में ध्यानलीन मुनि की उपस्थिति ।
५.
राजा द्वारा मुनि के पास आए हुए हिरण पर प्रहार । राजा का मुनि-दर्शन ।
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भय-भ्रान्त मन से तुच्छ कार्य पर पश्चात्ताप ।
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८-१० मुनि से क्षमा प्रार्थना मौन होने पर अधिक भयाकुलता । ११ मुनि का अभय-दान। अभय-दाता बनने का उपदेश । १२ अनित्य-जीव-लोक में आसक्त न होने का उपदेश । १३ जीवन की अस्थिरता ।
१४- १६ ज्ञाति सम्बन्धों की असारता ।
१७ कर्म-परिणामों की निश्चितता ।
१८, १६ राजा का संसार त्याग और जिन शासन में दीक्षा । २०,२१ क्षत्रिय मुनि द्वारा संजय राजर्षि से प्रश्न ।
२२ संजय राजर्षि का अपने बारे में उत्तर ।
२३ क्षत्रिय मुनि द्वारा एकान्तवादी विचार धाराओं का उल्लेख। २४-२७ एकान्त दृष्टिकोण मायापूर्ण, निरर्थक और नरक का हेतु । २८-३२ क्षत्रिय मुनि द्वारा आत्म- परिचय |
३३ क्रियावाद का समर्थन ।
३४ भरत चक्रवर्ती का प्रव्रज्या- - स्वीकार ।
३५ सगर चक्रवर्ती द्वारा संयम-आराधना ।
३३ कापोती-वृत्ति, केश लोच का उल्लेख ।
३४, ३५ मृगापुत्र की सुकुमारता और श्रामण्य की कठोरता । ३६ आकाश गंगा के स्प्रेत प्रतिस्प्रेत की तरह श्रामण्य की कठोरता ।
३७ बालू के कोर की तरह संयम की स्वाद- -हीनता। ३८ लोहे के यवों को चबाने की तरह श्रमण-धर्म की
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३६ मघवा चक्रवर्ती द्वारा संयम-आराधना । सनत्कुमार चक्रवर्ती द्वारा तपश्चरण ।
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शान्तिनाथ चक्रवर्ती द्वारा अनुत्तर- गति-प्राप्ति । कुन्थु नरेश्वर द्वारा मोक्ष प्राप्ति ।
अर नरेश्वर द्वारा कर्म- रजों से मुक्ति ।
४१ महापद्म चक्रवर्ती द्वारा तप का आचरण । हरिषेण चक्रवर्ती द्वारा अनुत्तर- गति - प्राप्ति ।
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४३ जय चक्रवर्ती का हजार राजाओं के साथ दम का
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उन्नीसवां अध्ययन मृगापुत्रीय ( श्रमण-चर्या का सांगोपांग श्लोक १-६ मृगापुत्र का परिचय मुनि को देख कर पूर्व जन्म की स्मृति ।
१० मृगापुत्र का माता-पिता से प्रव्रज्या के लिए निवेदन । ११-१४ जीवन की अशाश्वतता और काम-भोगों के कटु परिणाम । १५ जीवन की दुःखमयता ।
१६, १७ किम्पाक फल की तरह काम भोगों की अनष्टिता । १८, १६ लम्बे मार्ग में पाथेय-रहित मनुष्य की तरह धर्म-रहित मनुष्य का भविष्य दुःखकर।
२०,२१ लम्बे मार्ग में पाथेय सहित मनुष्य की तरह धर्म-सहित मनुष्य का भविष्य सुखकर।
२२, २३ आग लगे घर में से मूल्यवान् वस्तुओं की तरह अपने आपको संसार में से निकालने का मृगापुत्र का निवेदन । २४-३० माता-पिता द्वारा श्रमण-धर्म के पांच महाव्रत और रात्रि भोजन- वर्जन का परिचय ।
३१,३२ परीषहों का वर्णन ।
४७ उद्रायण राजा द्वारा मुनि-धर्म का आचरण । ४८ काशीराज द्वारा कर्म महावन का उन्मूलन। ४६ विजय राजा की जिन शासन में प्रव्रज्या ।
राजर्षि महाबल की मोक्ष प्राप्ति ।
एकान्त दृष्टिमय अहेतुवादों को छोड़ कर पराक्रमशाली राजाओं द्वारा जैन शासन का स्वीकार ।
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पृ० २८५-३०२
आचरण ।
दशार्णभद्र का मुनि-धर्म स्वीकार 1
कलिंग का करकण्डू, पांचाल का द्विमुख, विदेह में नमि और गान्धार में नग्गति द्वारा श्रमण-धर्म में प्रव्रज्या ।
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दिग्दर्शन)
जैन शासन के द्वारा अनेक जीवों का उद्धार ।
एकान्त दृष्टिमय अहेतुवादों को अस्वीकार करने से मोक्ष की प्राप्ति ।
पृ० ३०३-३२८
कठिनता ।
अग्नि शिखा को पीने की तरह श्रमण-धर्म की कठिनता । सत्त्व-हीन व्यक्ति की संयम के लिए असमर्थता । मेरु पर्वत को तराजू से तोलने की तरह संयम की कठिनता ।
४२ समुद्र को भुजाओं से तैरने की तरह संयम - पालन की कठिनता ।
४३ विषयों को भोगने के बाद श्रमण-धर्म के आचरण का सुझाव ।
४४ ऐहिक सुखों की प्यास वुझ जाने वाले के लिए संयम की सुकरता।
४५-७४ मृगापुत्र द्वारा नरक के दारुण दुःखों का वर्णन स्वयं के द्वारा अनन्त बार उनको सहने का उल्लेख 1
७५ माता-पिता द्वारा श्रामण्य की सबसे बड़ी कठोर चर्या-निष्प्रतिकर्मता का उल्लेख ।
७६-८५ मृगापुत्र द्वारा मृग-चारिका से जीवन बिताने का संकल्प । ८६,८७ मृगापुत्र का प्रव्रज्या स्वीकार ।
८८-६५ मृगापुत्र द्वारा ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की आराधना और मोक्ष प्राप्ति ।
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६६ संबुद्ध व्यक्तियों द्वारा मृगापुत्र का अनुगमन । ६७,६८ मृगापुत्र के आख्यान से प्रेरणा लेने का उद्बोधन ।
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