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________________ (३३) अठारहवां अध्ययन : संजयीय (जैन-शासन की परम्परा का संकलन ) श्लोक १३ संजय राजा का परिचय शिकार के लिए राजा का 1 वन-गमण । ४ केशर उद्यान में ध्यानलीन मुनि की उपस्थिति । ५. राजा द्वारा मुनि के पास आए हुए हिरण पर प्रहार । राजा का मुनि-दर्शन । ६ ७ भय-भ्रान्त मन से तुच्छ कार्य पर पश्चात्ताप । 1 ८-१० मुनि से क्षमा प्रार्थना मौन होने पर अधिक भयाकुलता । ११ मुनि का अभय-दान। अभय-दाता बनने का उपदेश । १२ अनित्य-जीव-लोक में आसक्त न होने का उपदेश । १३ जीवन की अस्थिरता । १४- १६ ज्ञाति सम्बन्धों की असारता । १७ कर्म-परिणामों की निश्चितता । १८, १६ राजा का संसार त्याग और जिन शासन में दीक्षा । २०,२१ क्षत्रिय मुनि द्वारा संजय राजर्षि से प्रश्न । २२ संजय राजर्षि का अपने बारे में उत्तर । २३ क्षत्रिय मुनि द्वारा एकान्तवादी विचार धाराओं का उल्लेख। २४-२७ एकान्त दृष्टिकोण मायापूर्ण, निरर्थक और नरक का हेतु । २८-३२ क्षत्रिय मुनि द्वारा आत्म- परिचय | ३३ क्रियावाद का समर्थन । ३४ भरत चक्रवर्ती का प्रव्रज्या- - स्वीकार । ३५ सगर चक्रवर्ती द्वारा संयम-आराधना । ३३ कापोती-वृत्ति, केश लोच का उल्लेख । ३४, ३५ मृगापुत्र की सुकुमारता और श्रामण्य की कठोरता । ३६ आकाश गंगा के स्प्रेत प्रतिस्प्रेत की तरह श्रामण्य की कठोरता । ३७ बालू के कोर की तरह संयम की स्वाद- -हीनता। ३८ लोहे के यवों को चबाने की तरह श्रमण-धर्म की Jain Education International ३६ मघवा चक्रवर्ती द्वारा संयम-आराधना । सनत्कुमार चक्रवर्ती द्वारा तपश्चरण । ३७ ३८ ३६ ४० शान्तिनाथ चक्रवर्ती द्वारा अनुत्तर- गति-प्राप्ति । कुन्थु नरेश्वर द्वारा मोक्ष प्राप्ति । अर नरेश्वर द्वारा कर्म- रजों से मुक्ति । ४१ महापद्म चक्रवर्ती द्वारा तप का आचरण । हरिषेण चक्रवर्ती द्वारा अनुत्तर- गति - प्राप्ति । ४२ ४३ जय चक्रवर्ती का हजार राजाओं के साथ दम का ४४ ४५,४६ ५० उन्नीसवां अध्ययन मृगापुत्रीय ( श्रमण-चर्या का सांगोपांग श्लोक १-६ मृगापुत्र का परिचय मुनि को देख कर पूर्व जन्म की स्मृति । १० मृगापुत्र का माता-पिता से प्रव्रज्या के लिए निवेदन । ११-१४ जीवन की अशाश्वतता और काम-भोगों के कटु परिणाम । १५ जीवन की दुःखमयता । १६, १७ किम्पाक फल की तरह काम भोगों की अनष्टिता । १८, १६ लम्बे मार्ग में पाथेय-रहित मनुष्य की तरह धर्म-रहित मनुष्य का भविष्य दुःखकर। २०,२१ लम्बे मार्ग में पाथेय सहित मनुष्य की तरह धर्म-सहित मनुष्य का भविष्य सुखकर। २२, २३ आग लगे घर में से मूल्यवान् वस्तुओं की तरह अपने आपको संसार में से निकालने का मृगापुत्र का निवेदन । २४-३० माता-पिता द्वारा श्रमण-धर्म के पांच महाव्रत और रात्रि भोजन- वर्जन का परिचय । ३१,३२ परीषहों का वर्णन । ४७ उद्रायण राजा द्वारा मुनि-धर्म का आचरण । ४८ काशीराज द्वारा कर्म महावन का उन्मूलन। ४६ विजय राजा की जिन शासन में प्रव्रज्या । राजर्षि महाबल की मोक्ष प्राप्ति । एकान्त दृष्टिमय अहेतुवादों को छोड़ कर पराक्रमशाली राजाओं द्वारा जैन शासन का स्वीकार । ५१ ५२ ५३ पृ० २८५-३०२ आचरण । दशार्णभद्र का मुनि-धर्म स्वीकार 1 कलिंग का करकण्डू, पांचाल का द्विमुख, विदेह में नमि और गान्धार में नग्गति द्वारा श्रमण-धर्म में प्रव्रज्या । ३६ ४० ४१ दिग्दर्शन) जैन शासन के द्वारा अनेक जीवों का उद्धार । एकान्त दृष्टिमय अहेतुवादों को अस्वीकार करने से मोक्ष की प्राप्ति । पृ० ३०३-३२८ कठिनता । अग्नि शिखा को पीने की तरह श्रमण-धर्म की कठिनता । सत्त्व-हीन व्यक्ति की संयम के लिए असमर्थता । मेरु पर्वत को तराजू से तोलने की तरह संयम की कठिनता । ४२ समुद्र को भुजाओं से तैरने की तरह संयम - पालन की कठिनता । ४३ विषयों को भोगने के बाद श्रमण-धर्म के आचरण का सुझाव । ४४ ऐहिक सुखों की प्यास वुझ जाने वाले के लिए संयम की सुकरता। ४५-७४ मृगापुत्र द्वारा नरक के दारुण दुःखों का वर्णन स्वयं के द्वारा अनन्त बार उनको सहने का उल्लेख 1 ७५ माता-पिता द्वारा श्रामण्य की सबसे बड़ी कठोर चर्या-निष्प्रतिकर्मता का उल्लेख । ७६-८५ मृगापुत्र द्वारा मृग-चारिका से जीवन बिताने का संकल्प । ८६,८७ मृगापुत्र का प्रव्रज्या स्वीकार । ८८-६५ मृगापुत्र द्वारा ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की आराधना और मोक्ष प्राप्ति । For Private & Personal Use Only ६६ संबुद्ध व्यक्तियों द्वारा मृगापुत्र का अनुगमन । ६७,६८ मृगापुत्र के आख्यान से प्रेरणा लेने का उद्बोधन । www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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