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(३०) दसवां अध्ययन : दुमपत्रक (जीवन की अस्थिरता और आत्म-बोध)
पृ० १७९-१९२ श्लोक १,२ जीवन की अस्थिरता और अप्रमाद का उद्बोध। २१-२६ इंद्रिय-बल की उत्तरोत्तर क्षीणता। ३ आयुष्य की क्षणभंगुरता।
२७ अनेक शीघ्र-घाती रोगों के द्वारा शरीर का स्पर्श । ४ मनुष्य-भव की दुर्लभता।
२८ स्नेहापनयन की प्रक्रिया। ५-६ स्थावर-काय में उत्पन्न जीव की उत्कृष्ट स्थिति। २,३० वान्त-भोगों के पुनः सेवन न करने का उपदेश। १०-१४ बस-काय में उत्पन्न जीव की उत्कृष्ट स्थिति।
३१,३२ प्राप्त विशाल न्याय-पथ पर अप्रमादपूर्वक बढ़ने की १५ प्रमाद-बहुल जीव का जन्म-मृत्यु-मय संसार में परिभ्रमण।
प्रेरणा। १६ मनुष्य-भव मिलने पर भी आर्य-देश की दुर्लभता।
३३ विषम-मार्ग पर न चले जाने की सूचना। १७ आर्य-देश मिलने पर भी पूर्ण पांचों इन्द्रियों की दुर्लभता। ३४ किनारे के निकट पहुंच कर प्रमाद न करने का उपदेश। १८ उत्तम धर्म के श्रवण की दुर्लभता।
३५ क्षपक-श्रेणि से सिद्धि-लोक की प्राप्ति। १६ श्रद्धा की दुर्लभता।
३६ उपशांत होकर विचरण करने का उपदेश । २० आचरण की दुर्लभता।
३७ गौतम की सिद्धि-प्राप्ति। ग्यारहवां अध्ययन : बहुश्रुतपूजा (बहुश्रुत व्यक्ति का महत्त्व-ख्यापन)
पृ० १९३-२०६ श्लोक १ अध्ययन का उपक्रम।
२० युवा सिंह के समान बहुश्रुत की सर्वश्रेष्ठता। २ अबहुश्रुत की परिभाषा।
२१ वासुदेव के समान बहुश्रुत की बलवत्ता। ३ शिक्षा प्राप्त न होने के पांच कारण।
२२ चौदह रत्नों के अधिपति चक्रवर्ती के साथ चौदह पूर्वधर ४,५ शिक्षा-शील के आठ लक्षण।
बहुश्रुत की तुलना। ६-६ अविनीत के चौदह लक्षण।
२३ देवाधिपति शक्र के साथ बहुश्रुत की तुलना। १०-१३ सुविनीत के पन्द्रह लक्षण।
२४ उगते हुए सूर्य के तेज के साथ बहुश्रुत के तेज की १४ शिक्षा-प्राप्ति की अर्हता।
तुलना। १५ शंख में रखे हुए दूध की तरह बहुश्रुत की दोनों ओर २५ प्रतिपूर्ण चन्द्रमा के साथ बहुश्रुत की तुलना। से शोभा।
२६ सामाजिकों के कोष्टागार के समान बहुश्रुत की परिपूर्णता। १६ कन्थक घोड़े की तरह भिक्षुओं में बहुश्रुत की सर्वश्रेष्टता। २७ सुदर्शना नामक जम्बू के साथ बहुश्रुत की तुलना। १७ जातिमान अश्व पर आरूढ योद्धा की तरह बहुश्रुत की २८ शीता नदी की तरह बहुश्रुत की सर्वश्रेष्ठता। अजेयता।
२६ मंदर पर्वत के समान बहुश्रुत की सर्वश्रेष्ठता। १८ साठ वर्ष के बलवान हाथी की तरह बहुश्रुत की ३० रत्नों से परिपूर्ण अक्षय जल वाले स्वयंभूरमण समुद्र के अपराजेयता।
साथ बहुश्रुत के अक्षय ज्ञान की तुलना। १६ पुष्ट स्कन्ध वाले यूथाधिपति बैल की तरह बहुश्रुत ३१ बहुश्रुत मुनियों का मोक्ष-गमन। आचार्य की शुशोभनीयता।
३२ श्रुत के आश्रयण का उपदेश। बारहवां अध्ययन : हरिकेशीय (जाति की अतात्त्विकता का संबोध)
पृ० २०७-२२२ श्लोक १,२ हरिकेशबल मुनि का परिचय।
२०-२३ भद्रा द्वारा कुमारों को समझाने का प्रयत्न। ऋषि का ३ मुनि का भिक्षा के लिए यज्ञ-मण्डप में गमन।
वास्तविक परिचय और अवहेलना से होने वाले अनिष्ट ४-६ मलिन मुनि को देख कर ब्राह्मणों का हंसना और मुनि
की ओर संकेत। के वेश और शरीर के बारे में परस्पर व्यंग्य-संलाप। २४ यक्ष द्वारा कुमारों को भूमि पर गिराना। ७ मुनि को अपमानजनक शब्दों से वापस चले जाने की २५ यक्ष द्वारा कुमारों पर भयंकर प्रहार। भद्रा का पुनः प्रेरणा।
कुमारों को समझाना। ८ यक्ष का मुनि के शरीर में प्रवेश।
२६-२८ भिक्षु का अपमान करने से होने वाले अनिष्ट परिणाम ६,१० यक्ष द्वारा मुनि का परिचय और आगमन का
की ओर संकेत। उद्देश्य-कथन।
२. छात्रों की दुदर्शा। ११ सोमदेव ब्राह्मण द्वारा भोजन न देने का उत्तर।
३०,३१ सोमदेव का मुनि से विनम्र निवेदन। १२-१७ यक्ष और सोमदेव के बीच दान के अधिकारी के बारे ३२ मुनि द्वारा स्पष्टीकरण। में चर्चा।
३३-३५ सोमदेव का पुनः क्षमा देने का निवेदन। भिक्षा-ग्रहण १८ सोमदेव द्वारा मुनि को मार-पीट कर बाहर निकालने
करने का आग्रह । मुनि द्वारा भिक्षा-स्वीकार। का आदेश।
३६ देवों द्वारा दिव्य वृष्टि और दिव्य घोष। १६ कुमारों द्वारा मुनि पर प्रहार।
३७ तप की महत्ता का प्रतिपादन, जाति की महत्ता का
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