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________________ सोलसमं अज्झयणं सोलहवां अध्ययन बंभचेरसमाहिठाणं : ब्रह्मचर्य-समाधि स्थान मूल १. सुयं मे आउ ! तेणं भगवया एवमक्खायं --- इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं दस बंभचेरसमाहिठाणा पण्णत्ता, जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुसिदिए गुत्तरं भयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा । २. कमरे खलु ते चेरेहिं भगवंतेहिं ते थेरेहिं भगवंतेहिं दस बंभचेरसमाहिठाणा पण्णत्ता, जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुतिदिए गुत्तर्वभयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा ? ३. इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं दस बंभचेरसमाहिठाणा पण्णत्ता, जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिंदिए गुत्तबंभयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा, तं जहा - विवित्ताइं सयणासणाइं सेविज्जा, से निग्गंथे । नो इत्वीपसुपंडगसंसत्ताई सयणासाई सेवित्ता हवइ, से निग्गंथे । तं कहमिति चे ? आयरियाह-- निग्गंथस्स खलु इत्थीपसुपंडगसंसत्ताई सयणासणाई सेवमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा Jain Education International संस्कृत छाया श्रुतं मया आयुष्मन् ! तेन भगवतै वमाख्यातम् इह खलु स्थविरैर्भ गवद्भिर्दश ब्रह्मचर्यसमाधिस्थानानि प्रज्ञप्तानि यानि भिक्षुः श्रुत्वा निशम्य संयमबहुलः संवरबहुलः समाधि बहुल गुप्ता गुप्तेन्द्रियः गुप्तब्रह्मचारी सदाऽप्रमतो विहरेत्। कतराणि खलु तानि स्थविरैर्भगवदिर्दश ब्रह्मचर्य समाधिस्थानानि प्रज्ञप्तानि यानि भिक्षुः श्रुत्वा निशम्य संयमबहुलः संवरबहुलः समाधि बहुत गुप्तः गुप्तेन्द्रियः गुप्तवासात विहरेत् ? इमानि खलु स्थविरैर्भगवद्भिर्दश ब्रह्मचर्यसमाधिस्थानानि प्रज्ञप्तानि, यानि भिक्षुः श्रुत्वा निशम्य संयमबहुलः संरबहुलः समाधिबहुलः गुप्तः गुप्तेन्द्रियः गुप्तब्रह्मचारी सदाऽप्रमत्तो विहरेत्। तद्यथा विविक्तानि शयनासनानि सेवेत, स निर्ग्रन्थः । नो स्त्रीपशुपण्डकसंसक्तानि शयनासनानि सेविता भवति, स निर्ग्रन्थः । तत् कथमिति चेत् ? आचार्य आह-निर्ग्रन्थस्य खलु स्त्रीपशुपण्डकसंसक्तानि शयनासनानि सेवमानस्य ब्रह्मचारिणो ब्रह्मचर्ये शंका वा कांक्षा वा विचिकित्सा वा समुत्पद्येत, भेदं वा लभेत, उन्मादं वा प्राप्नुयात्, हिन्दी अनुवाद आयुष्मन् !' मैंने सुना है, भगवान् (प्रज्ञापक आचार्य) ने ऐसा कहा है-निर्ग्रन्थ प्रवचन में जो स्थविर ( गणधर ) भगवान हुए हैं उन्होंने ब्रह्मचर्य-समाधि के दस स्थान बतलाए हैं, जिन्हें सुन कर जिनके अर्थ का निश्चय कर, भिक्षु संयम, संवर और समाधि का पुनः पुनः अभ्यास करे मन, वाणी और शरीर का गोपन करे, इन्द्रियों को उनके विषयों से बचाए, ब्रह्मचर्य को नौ सुरक्षाओं से सुरक्षित रखे और सदा अप्रमत्त होकर विहार करे। स्थविर भगवान् ने वे कौन से ब्रह्मचर्य-समाधि के दस स्थान बतलाए हैं, जिन्हें सुन कर जिनके अर्थ का निश्चय कर, भिक्षु संयम, संबर और समाधि का पुनः - पुनः अभ्यास करे, मन, वाणी और शरीर का गोपन करे, इन्द्रियों को उनके विषयों से बचाए, ब्रह्मचर्य को नी सुरक्षाओं से सुरक्षित रखे और सदा अप्रमत्त होकर विहार करे ? स्थविर भगवान् ने ब्रह्मचर्य-समाधि के दस स्थान ये बतलाए हैं, जिन्हें सुन कर जिनके अर्थ का निश्चय कर, भिक्षु संयम, संवर और समाधि का पुनः पुनः अभ्यास करे। मन, वाणी और शरीर का गोपन करे, इन्द्रियों को उनके विषयों से बचाए, ब्रह्मचर्य को नौ सुरक्षाओं से सुरक्षित रखे और सदा अप्रमत्त होकर विहार करे। वे इस प्रकार हैंजो एकांत शयन और आसन का सेवन करता है, वह निर्ग्रन्थ है। निर्ग्रन्थ स्त्री, पशु और नपुंसक से आकीर्ण शयन और आसन का सेवन नहीं करता।" यह क्यों ? ऐसा पूछने पर आचार्य कहते हैं-स्त्री. पशु और नपुंसक से आकीर्ण शयन और आसन का सेवन करने वाले ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ को ब्रह्मचर्य के विषय में शंका, कांक्षा या विचिकित्सा उत्पन्न होती है अथवा ब्रह्मचर्य का विनाश होता है अथवा उन्माद पैदा होता है अथवा दीर्घकालिक रोग और आतंक होता है अथवा वह केवली - कथित धर्म से भ्रष्ट हो जाता For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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