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________________ उत्तरज्झयणाणि २६२ अध्ययन १५ : श्लोक १६ टि० २५-२८ शान्त्याचार्य के अनुसार इसका अर्थ 'संयम' है । खेदानुगत २७. जिसके मित्र नहीं होते (अमित्त) अर्थात् जो संयमी है। यहां मित्र शब्द का प्रयोग आसक्ति के हेतुभूत वयस्क के २५. जिसे आगम का परम अर्थ प्राप्त हुआ है (कोवियप्पा) अर्थ में हुआ है। मुनि को सबके साथ मैत्री रखनी चाहिए चूर्णिकार के अनुसार कोविदात्मा वह है जिसने सभी किन्तु राग-वृत्ति करने वाले को मित्र नहीं बनाना चाहिए, यही ज्ञातव्य तथ्यों का पारायण या अभ्यास कर लिया है। इसका हार्द है। वृत्तिकार के अनुसार इसका अर्थ है-वह व्यक्ति जिसने २८. जिसका कषाय मंद होता है (अणुक्कसाई) शास्त्र का परम अर्थ पा लिया है। इसके संस्कृत रूप दो बनते हैं-अणुकषायी और २६. किसी को भी अपमानित न करने वाला (अविहेडए) अनुत्कषायी। चूर्णिकार के अनुसार जो वचन और काया से दूसरों का चूर्णि में इसका अर्थ है-अल्पकषायी। वृत्तिकार ने मुख्य अपवाद नहीं करता वह 'अविहेटक' होता है। रूप से संज्वलन कषाययुक्त व्यक्ति को अणुकषायी माना है। शान्त्याचार्य ने 'अविहेटक' का अर्थ 'अबाधक' किया है। इसका वैकल्पिक अर्थ है-जो उत्कषायी–प्रबल कषायी न हो देखें-दसवेआलियं १०।१० का टिप्पण। वह अणुकषायी होता है। १. बृहवृत्ति, पत्र ४१६ : खेदयत्यनेन कर्मेति खेदः-संयमस्तेनानुगतो- युक्तः खेदानुगतः। २. उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ० २३८ : कोविपप्पा कोविदात्मा ज्ञातव्येषु सर्वेषु परिचेष्ठित इत्यर्थः। ३. बृहद्वृत्ति, पत्र ४१६, ४२०: कोविदः-लब्ध-शास्त्रपरमार्थ, आत्माऽत्रस्येति कोविदात्मा। ४. उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ० २३८ : विहेडनं प्रपंचनं, बाचा कायेन च परापवाद इत्यर्थः, अनपवादी। ५. वृहद्वृत्ति, पत्र ४२० : ‘अविठकः' न करयचिद्विबाधकः । ६. वही, पत्र ४२० : अविद्यमानानि मित्राणि अभिष्वंगहेतवो वयस्या यस्यासावमित्रः। ७. उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ० २३८ : अणु-रतोक अल्पं अल्पकषायी। ८. बृहवृत्ति, पत्र ४२० : अणवः-स्वल्पाः सज्वलननामान इति यावत् कपायाः-कोधादयो यस्येति सर्वधनादित्वादिनि प्रत्ययेऽणुकषायी प्राकृतत्वात सूत्रे ककारस्य द्वित्वं, यद् वा उत्कषायी--प्रबलकषायी न तथाऽनुत्कषायी। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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