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________________ उत्तरज्झयणाणि २७. शांति-मार्ग को (संतिमग्गं) शांति का अर्थ है 'निर्वाण, उपशम और अहिंसा' । शांति-मार्ग अर्थात् मुक्तिमार्ग। यह दसविध यति-धर्म का सूचक है ।' १९२ अध्ययन १०: श्लोक ३६, ३७ टि० २७, २८ चतुर्व्यूह को अर्थ-पद कहा गया है । अर्थ-पद का अर्थ है 'पुरुषार्थ का स्थान' । न्याय की परिभाषा में चार अर्थ-पद इस प्रकार हैं 'सन्तिमग्गं च बूहए' – इस पद की तुलना धम्मपद २०।१३ के तीसरे चरण से होती है- 'सन्तिमग्गमेव ब्रूहय' । २८. अर्थपद ( शिक्षापद) से (अट्ठपअ ) चूर्णिकार ने अर्थ-पद का कोई अर्थ नहीं किया है। शान्त्याचार्य ने उसका एक शाब्दिक-सा अर्थ किया हैअर्थ-पद अर्थात् अर्थ-प्रधान पद । न्यायशास्त्र में मोक्ष-शास्त्र के १. बृहद्वृत्ति, पत्र २४१ शाम्यन्त्यस्यां सर्वदुरितानीति शांतिः --- निर्वाणं तस्या मार्ग:---पंथाः, यद्वा शांतिः उपशमः सैव मुक्तिहेतुतया मार्गः शांतिमार्गों, दशविधधर्मोपलक्षणं शांतिग्रहणम् । Jain Education International (१) हेय - दुःख और उसका निर्वर्तक ( उत्पादक) अर्थात् दुःख - हेतु | (२) आत्यन्तिक- हान—दुःख - निवृत्ति रूप मोक्ष का कारण अर्थात् तत्त्वज्ञान | (३) इसका उपाय ( शास्त्र ) । (४) अधिगन्तव्य - लभ्यमोक्ष । २. बृहद्वृत्ति पत्र २४१ अर्थप्रधानानि पदानि अर्थपदानि । ३. न्याय भाष्य, 9 19 19 । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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