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________________ द्रुमपत्रक १८१ अध्ययन १० : आमुख स्थिति से अनभिज्ञ थे। सभी भगवान् के पास आए। गौतम ने को सम्बोधित कर 'दुमपत्तए' (द्रुमपत्रक) अध्ययन कहा । ' | वंदना की, स्तुति की वे सभी तापस मुनि केवली परिषद् में चले गए। गौतम ने उन्हें भगवान् की वन्दना करने के लिए कहा। भगवान् ने कहा- “ गौतम ! केवलियों की आशातना मत करो।” गौतम ने 'मिच्छामि दुक्कड़ लिया। इस अध्ययन के प्रत्येक श्लोक के अन्त में 'समयं गोयम ! मा पमायए' है। नियुक्ति (गा० ३०६ ) में 'तणिस्साए भगवं सीसाणं देइ अनुसट्ठि' - यह पद है। इसका तात्पर्य है कि भगवान् महावीर गौतम को सम्बोधित कर उनकी निश्राय में, अन्य सभी शिष्यों को अनुशासन-शिक्षा देते हैं । गौतम का धैर्य टूट गया। भगवान् ने उनके मन की बात जान ली। उन्होंने कहा—“गौतम! देवताओं का वचन प्रमाण है या जिनवर का ?" दशवैकालिक नियुक्ति गाथा ७८ में 'निश्रावचन' का उदाहरण यही अध्ययन है। इसकी चर्चा आवश्यक निर्युक्ति में भी मिलती है । गौतम ने कहा- “भगवन् ! जिनवर का वचन प्रमाण है ।" भगवान् ने कहा - " गौतम ! तू मुझ से अत्यन्त निकट है, चिर-संसृष्ट है। तू और मैं दोनों एक ही अवस्था को प्राप्त होंगे। दोनों में कुछ भी भिन्नता नहीं रहेगी।” भगवान् ने गौतम १. (क) उत्तराध्ययन निर्युक्ति, गाथा २६१-३०६ । (ख) बृहद्वृत्ति, पत्र ३२३-३३३ तेणं कालेणं तेणं समएणं पिट्टीचंपा णाम णयरी... ताथे सामी दुमपत्तयं णाम अज्झयणं पण्णवे । Jain Education International इस अध्ययन में जीवन की अस्थिरता, मनुष्य भव की स्नेहापनयन दुर्लभता, शरीर तथा इन्द्रिय बल की उत्तरोत्तर क्षीणता, की प्रक्रिया, वान्त भोगों को पुनः स्वीकार न करने की शिक्षा आदि-आदि का सुन्दर चित्रण है। दशवैकालिक नियुक्ति गाथा ७८ पुच्छाए नाहियवाई पुच्छे जीवत्थित्तं अणिच्छंतं ।। कोणिओ खलु निस्सावयणमि गोयमस्सामी । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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