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________________ नमि-प्रव्रज्या अध्ययन ६ : श्लोक २७-३५ इस अर्थ को सुनकर हेतु और कारण से प्रेरित हुए देवेन्द्र ने नमि राजर्षि से इस प्रकार कहा हे क्षत्रिय ! अभी तुम बटमारों, प्राण-हरण करने वाले लुटेरों, गिरहकटों और चोरों का निग्रह कर नगर में शान्ति स्थापित करो, फिर मुनि बन जाना। यह अर्थ सुनकर हेतु और कारण से प्रेरित हुए नमि राजर्षि ने देवेन्द्र से इस प्रकार कहा मनुष्यों द्वारा अनेक बार मिथ्यादण्ड का प्रयोग किया जाता है। अपराध नहीं करने वाले यहां पकड़े जाते हैं और अपराध करने वाला छूट जाता है। इस अर्थ को सुन कर हेतु और कारण से प्रेरित हुए देवेन्द्र ने नमि राजर्षि से इस प्रकार कहा २७.एयम8 निसामित्ता एतमर्थं निशम्य हेऊकारणचोइओ। हेतुकारणचोदितः। तओ नमिं रायरिसिं ततो नमि राजर्षि देविंदो इणमब्बवी।। देवेन्द्र इदमब्रवीत्।। २८.आमोसे लोमहारे य आमोषान् लोमहारान् गंठिभेए य तक्करे। ग्रन्थिभेदांश्च तस्करान्। नगरस्स खेमं काऊणं नगरस्य क्षेमं कृत्वा तओ गच्छसि खत्तिया !।। ततो गच्छ क्षत्रिय!। २६.एयमलृ निसामित्ता एतमर्थं निशम्य हेऊकारणचोइओ। हेतुकारणचोदितः। तओ नमी रायरिसी ततो नमिः राजर्षिः देविंदं इणमब्बवी। देवेन्द्रमिदमब्रवीत्।। ३०.असई तु मणुस्सेहिं असकृत्तु मनुष्यैः मिच्छा दंडो पर्जुजई। मिथ्यादण्डः प्रयुज्यते। अकारिणोऽत्थ बज्झंति अकारिणोऽत्र बध्यन्ते मुच्चई कारओ जणो।। मुच्यते कारको जनः।। ३१.एयमलै निसामित्ता एतमर्थं निशम्य हेऊकारणचोइओ। हेतुकारणचोदितः। तओ नर्मि रायरिसिं ततो नमि राजर्षि देविंदो इणमब्बवी।। देवेन्द्र इदमब्रवीत्।। ३२.जे केइ पत्थिवा तुन्म ये केचित् पार्थिवास्तुभ्यं नानमंति नराहिवा!। नानमन्ति नराधिप! वसे ते ठावइत्ताणं वशे तान् स्थापयित्वा तओ गच्छसि खत्तिया!।। ततो गच्छ क्षत्रिय !11 ३३.एयमट्ठ निसामित्ता एतमर्थं निशम्य हेऊकारणचोइओ। हेतुकारणचोदितः। तओ नमी रायरिसी ततो नमिः राजर्षिः देविंदं इणमब्बवी।। देवेन्द्रमिदमब्रवीत्।। ३४.जो सहस्सं सहस्साणं यः सहनं सहसाणां संगामे दुज्जए जिणे। सङ्ग्रामे दुर्जये जयेत्। एगं जिणेज्ज अप्पाणं एकं जयेदात्मानं एस से परमो जओ।। एष तस्य परमो जयः।। ३५.अप्पाणमेव जुज्झाहि आत्मनैव युद्धयस्व किं ते जुज्झेण बज्झओ?। किं ते युद्धेन बाह्यतः। अप्पाणमेव अप्पाणं आत्मनैव आत्मानं जइत्ता सुहमेहए।। जित्वा सुखमेधते।। हे नराधिप क्षत्रिय ! जो कई राजा तुम्हारे सामने नहीं झुकते उन्हें वश में करो, फिर मुनि बन जाना। यह अर्थ सुनकर हेतु और कारण से प्रेरित हुए नमि राजर्षि ने देवेन्द्र से इस प्रकार कहा जो पुरुष दुर्जेय संग्राम में दस लाख योद्धाओं को जीतता है, उसकी अपेक्षा वह एक अपने आपको जीतता है, यह उसकी परम विजय है। आत्मा के साथ ही युद्ध कर, बाहरी युद्ध से तुझे क्या लाभ? आत्मा को आत्मा के द्वारा ही जीत कर मनुष्य सुख पाता है। Jain Education Intemational Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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