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________________ कापिलीय के कारण जो अति मनोज्ञ होता है, उसे पेशल माना है ।" ३५. (श्लोक १९) मनोवैज्ञानिक मानते हैं जो व्यक्ति कामवासना की पूर्ति नहीं करता, उसमें वित्त - विक्षेप या पागलपन आ जाता है। इस मान्यता में सापेक्ष सचाई है। इस सचाई का जो दूसरा पहलू है, उसका प्रतिपादन प्रस्तुत श्लोक में हुआ है । कामवासना के प्रति आकर्षण हो और उसकी पूर्ति न हो तथा सुख प्राप्ति का कोई दूसरा विकल्प सामने न हो, उस अवस्था में मनोवैज्ञानिक मान्यता में सचाई हो सकती है। १५७ अध्ययन ८ : श्लोक २० टि० ३५,३६ है । यही रूपान्तरण की प्रक्रिया का सूत्र है । जिस वस्तु या प्रवृत्ति से अनुराग हटाना हो, उससे अनुराग को हटाकर दूसरी अन्य वस्तु या प्रवृत्ति पर उसको स्थापित कर दो। उस नई वस्तु या प्रवृत्ति पर अनुराग होने लगेगा और पूर्व अनुराग विराग में सूत्रकार का अभिमत है- जो कामवासना के प्रति विराग या अनाकर्षण करना चाहता है वह धर्म के प्रति अनुराग या आकर्षण उत्पन्न करे। जो व्यक्ति धर्म के प्रति अनुरक्त होकर उसमें अपनी आत्मा का नियोजन कर देता है, वह कामवासना पर विजय पा लेता है और विक्षिप्तता की स्थिति से भी बच जाता है। यह 'अनुरागात् विरागः' अथवा प्रतिपक्ष भावना का सिद्धान् १. बृहद्वृत्ति, पत्र २६८ पेशलम् - इह परत्र चैकान्तहितत्वेनातिमनोज्ञम् । Jain Education International बदल जाएगा। ३६. दोनों लोकों को आराध लिया (आराहिया दुबे लोग) इस विषय में तीन पक्ष प्रचलित हैं१. केवल वर्तमान को सुधारना। २. केवल परलोक को सुधारना । ३. इहलोक और परलोक दोनों को सुधारना । प्रस्तुत आगम में तीसरा पक्ष मान्य किया गया है। धर्म का आचरण करने वाले दोनों—इहलोक और परलोकको सुधारते हैं। वे वर्तमान जीवन को पवित्र बनाते हैं और अगले जीवन को भी पवित्र बना लेते हैं। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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