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________________ उरनीय इह कामणियस्स अत्तट्ठे नावरझई। पूइदेहनिरोहेणं भवे देव त्ति मे सुयं ।। २७. इड्डी जुई जसो वण्णो आर्ड सुहमणुत्तरं । भुज्जो जत्थ मणुस्सेसु तत्थ से उववज्जई ।। २६. २८. बालस्स पस्स बालत्तं अहम्मं पडिवज्जिया । चिच्चा धम्मं अहम्मिट्ठे नरए उववज्जई २६. धीरस्स पस्स धीरतं सव्वधम्माणुवत्तिणो । चिच्चा अधम्मं धम्मिट्ठे देवेसु उववज्जई ।। ३०. तुलियाण बालभावं अबालं चैव पंडिए । चइऊण बालभावं अबालं सेवए मुणि ।। Jain Education International —त्ति बेमि । १३५ इह कामानिवृत्तस्य आत्मार्थी नापराध्यति । पूतिदेहनिरोधेन भवेद् देव इति मया श्रुतम् ।। ऋद्धितिर्यशोषण आयुः सुखमनुत्तरम् । भूयो यत्र मनुष्येषु तत्र स उपपद्यते ।। बालस्य पश्य बालत्वम् अधर्मं प्रतिपद्य । त्यक्त्वा धर्ममधर्मिष्ठः नरके उपपद्यते ।। धीरस्य पश्य धीरत्वं सर्वधर्मानुवर्तिनः । त्यक्त्वाऽधर्मं धर्मिष्टः देवेषु उपपद्यते ।। तोलयित्वा बालभावम् अबालं चैव पण्डितः । त्यक्त्वा बालभावम् अबालं सेवते मुनिः ।। - इति ब्रवीमि अध्ययन ७ : श्लोक २६-३० इस मनुष्य भव में काम-भोगों से निवृत्त होने वाले पुरुष का आत्म-प्रयोजन नष्ट नहीं होता। वह पूतिदेह ( औदारिक शरीर) का निरोध कर देव होता हैऐसा मैंने सुना है । ( देवलोक से च्युत होकर) वह जीव विपुल ऋद्धि, द्युति, यश, वर्ण, आयु और अनुत्तर सुख वाले मनुष्य-कुलों में उत्पन्न होता है। 1 तू बाल ( अज्ञानी) जीव की मूर्खता को देख वह अधर्म को ग्रहण कर, धर्म को छोड़, अधर्मिष्ठ बन नरक में उत्पन्न होता है। सब धर्मों का पालन करने वाले धीरर-पुरुष की धीरता को देख । वह अधर्म को छोड़कर धर्मिष्ठ बन देवों में उत्पन्न होता है । पण्डित मुनि बाल-भाव और अबाल-भाव की तुलना कर, बाल-भाव को छोड़, अबाल-भाव का सेवन करता है। For Private & Personal Use Only - ऐसा मैं कहता हूं। www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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