________________
क्षुल्लक-निर्ग्रन्थीय
१२१
- अध्ययन ६ : श्लोक १६, १७ १६. एसणासमिओ लज्जू एषणासमितो लज्जावान् एषणा-समिति से युक्त और लज्जावान् मुनि'५ गांवों गामे अणियओ चरे। ग्रामेऽनियतश्चरेत्।
में अनियत चर्या करे। वह अप्रमत्त रहकर गृहस्थों अप्पमत्तो पमत्तेहिं अप्रमत्तः प्रमत्तेभ्यः
से२ पिण्डपात की गवेषणा करे। पिंडवायं गवेसए ।। पिण्डपातं गवेषयेत् ।। १७. एवं से उदाहु अणुत्तरनाणी एवं सो उदाहृतवान् अनुत्तरज्ञानी अनुत्तर-ज्ञानी, अनुत्तर-दर्शी, अनुत्तर-ज्ञानदर्शनधारी", अणुत्तरदंसी अनुत्तरदर्शी
अर्हन, ज्ञातपुत्र, वैशालिक और व्याख्याता भगवान अणुत्तरनाणदंसणधरे।
अनुत्तरज्ञानदर्शनधरः। ने ऐसा कहा है। अरहा नायपुत्ते
अर्हन् ज्ञातपुत्रः भगवं वेसालिए वियाहिए।। भगवान् वैशालिको व्याख्याता।।
-त्ति बेमि।
-इति ब्रवीमि।
-ऐसा मैं कहता हूं।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education Intemational