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________________ असंस्कृत ९३ अध्ययन ४ : श्लोक १३ टि० ३७ यह चाहता था कि मेरी पत्नी बच्चों की मां होकर दूसरों को मेरे धन की जानकारी न दे, इसलिए वह ऐसा क्रूर कर्म करता। इस प्रकार उसने अनेक कन्याओं की जीवनलीला समाप्त कर डाली। एक बार उसने अतीव रूपवती कन्या को देखा और उसके परिवार को अपार धनराशि देकर उससे विवाह कर लिया । वह गर्भवती हुई। उसने उसे नहीं मारा। उसने पुत्र का प्रसव किया। पुत्र आठ वर्ष का हो गया। चोर ने सोचा, बहुत काल बीत गया है। अब मैं पहले पत्नी को मारकर फिर बच्चे को भी मार डालूं तो अच्छा रहेगा। उसने एक दिन अवसर देखकर पत्नी को मार डाला। बच्चे ने यह देख लिया । वह भागा और गली में आकर चिल्लाने लगा । पास-पड़ोस के लोग एकत्रित हो गए। लड़के ने कहा इसने मेरी मां को मार डाला है। राजपुरुषों ने उसे पकड़ लिया। घर की जांच की गई। उन्होंने देखा, कुंआ धन से भरा पड़ा है उसमें हड्डियां भी पड़ी हैं। उसे राजा के समक्ष उपस्थित किया गया। सारा धन उस बच्चे को दे दिया और उस चोर को फांसी पर लटका दिया। १. सुखबोधा, पत्र ८ १ | Jain Education International जो पापकारी प्रवृत्तियों से धन एकत्रित करता है और धन को ही सब कुछ मानता है, उसकी यही दशा होती है। धनत्राण नहीं देता।" For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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