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________________ उत्तरज्झयणाणि (३) कर्ज न चुकाने पर निगृहीत किया हुआ । (४) दुर्भिक्ष आदि होने पर भोजन आदि के लिए जिसने दासत्व ग्रहण किया हो। (५) किसी अपराध के कारण जुर्माना न देने पर राजा द्वारा जो दास बनाया गया हो। (६) बन्दी बनाकर जो दास बनाया गया हो। मनुस्मृति में सात प्रकार के दास बतलाए गए हैं— (१) ध्वजाहृतदास — संग्राम में पराजित दास । (२) भक्तदास - भोजन आदि के लिए दास बना हुआ। (३) गृहजदास — अपनी दासी से उत्पन्न दास । (४) क्रीतदास - खरीदा हुआ दास । (५) दत्रिमदास - किसी द्वारा दिया हुआ दास । (६) पैतृकदास पैतृक धन रूप में प्राप्त दास । (७) दण्डदास- -ऋण निर्यातन के लिए बना हुआ दास। मनुस्मृति में यह भी कहा गया है कि दास 'अधन' होते हैं। वे जो धन एकत्रित करते हैं वह उनका हो जाता है जिनके वे दास हैं। निशीथ चूर्णि और मनुस्मृति की दास सूची सदृश है। मनुस्मृति में केवल दत्रिम दास का विशेष उल्लेख हुआ है। याज्ञवल्क्यस्मृति के टीकाकार विज्ञानेश्वर ने पन्द्रह प्रकार के दास बतलाए हैं। उनमें मनुस्मृति में कथित प्रकार तो हैं ही, साथ में जु में जीते अपने आप मिले हुए, दुर्भिक्ष के समय हुए, बचाए हुए आदि-आदि अधिक हैं। * सूत्रकार ने ‘दास-पौरुष' को कामस्कन्ध— धन-सम्पत्ति माना है । दास- पौरुष शब्द से यह पता चलता है कि उस समय ' दास - प्रथा' बहुत प्रचलित थी । टीकाकारों ने दास का अर्थ पोष्य या प्रेष्य वर्ग और पौरुषेय का अर्थ पदाति समूह किया है। अंग्रेजी में भी दो शब्द हैं। Slave और Servant | ये दोनों दास और नौकर के पर्यायवाची हैं । ७८ जैन - साहित्य के अनुसार बाह्य परिग्रह के दस भेद हैं । उनमें 'दुप्पय' अर्थात् दो पैर वाले दास-दासियों को भी बाह्य परिग्रह माना गया है। १. निशीथ चूर्णि, पृ. ११1 २. मनुस्मृति ८ । ४१५ ध्वजाहृतो भक्तदासो, गृहजः क्रीतदत्रिमी । पैत्रिको दण्डदासश्च सप्तैते दासयोनयः ॥ ३. मनुस्मृति ८ ।४१६ भार्या पुत्रश्च, दासश्च त्रय एवाधनाः स्मृताः । यत्ते समधिगच्छन्ति, यस्य ते तस्य तद्धनम् ।। ४. याज्ञवल्क्यस्मृति, २।१४, पृ. २७३ । ५. (क) बृहद्वृत्ति, पत्र १८८ : दास्यते - दीयते एभ्य इति दासाःपोष्यवर्गरूपास्ते च पोरुसंति - सूत्रत्वात्पौरुषेयं च- - पदातिसमूहः दासपौरुषेयम् । Jain Education International अध्ययन ३ : श्लोक १६ टि० ३० कौटिलीय अर्थशास्त्र में गुलाम के लिए 'दास' और नौकर के लिए 'कर्मकर' शब्दों का व्यवहार किया गया है। इसमें दासकर्मकरकल्प नाम का एक अध्याय है ।" अनगारधर्मामृत की टीका में पण्डित आशाधरजी ने 'दास' शब्द का अर्थ - खरीदा हुआ कर्मकर किया है। आजकल लोगों की धारणा है कि 'दास' शब्द का अर्थ क्रूर और जंगली लोग है। पर 'दास' शब्द का मूल अर्थ यह नहीं जान पड़ता। दास का अर्थ दाता (जिसने अंग्रेजी में Noble कहते हैं) रहा होगा। ऋग्वेद की कई ऋचाओं से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि 'सप्त-सिन्धु' पर दासों का आधिपत्य था । जान पड़ता है कि दास लोग राजपूतों की तरह शूर थे। नमूचि, शंबर आदि दास बड़े शूरवीर थे।" इस आर्यपूर्व जाति पर आधुनिक अनुसन्धाताओं ने बहुत प्रकाश डाला है। ३०. संपूर्ण बोधि का (केवलं बोहि) बोधि शब्द 'बुध' धातु से निष्पन्न है। इसका अर्थ हैज्ञान का विवेक । अध्यात्म के अर्थ में इसका अर्थ हैआत्मबोध । यही मोक्षमार्ग का बोध है। बोधि और ज्ञान एक नहीं हैं । सामान्य ज्ञान के लिए बोधि का प्रयोग नहीं हो सकता । ज्ञान पुस्तकीय तथ्यों के आधार पर होने वाली अवगति है। बोधि आन्तरिक विशुद्धि से स्वयं प्रस्फुटित होने वाला ज्ञान है। इसे अतीन्द्रिय ज्ञान या विशिष्ट ज्ञान भी कहा जा सकता है। दूसरे शब्दों में कहें तो ज्ञान, दर्शन और चारित्र की सम्यग् बुति बोधि है 'असोच्चा केवली' इसके स्फुट निदर्शन हैं। उनमें आन्तरिक विशुद्धि से प्रज्ञा का इतना जागरण हो जाता है कि वे केवली बन जाते हैं। संपूर्ण ज्ञान के धनी बन जाते हैं ।" स्थानांग सूत्र में तीन प्रकार की बोधि का उल्लेख है— ज्ञानबोधि, दर्शनबोधि और चारित्रबोधि । वृत्तिकार ने यहां 'बोधि' का अर्थ सम्यग्बोध किया है । ३ सूत्रकृतांग २/ ७३ में 'णो सुलभं च बोहिं च आहियं'में प्रयुक्त बोधि शब्द का अर्थ वृत्तिकार ने सम्यग् दर्शन की (ख) सुखबोधा, पत्र ७७ । ६. धर्मस्थीय, ३।१३, प्रकरण ६५ । ७. अनगारधर्मामृत, ४ । १२१ । भारतीय संस्कृति और अहिंसा, पृ. ११। ८. ६. ऋग्वेद, १1३२ ।११; ५। ३० । ५ । १०. भारतीय संस्कृति और अहिंसा पृ. १३ । ११. भगवती, ६।४६ आदि । १२. ठाणं ३१७६ तिविहा बोधी पण्णत्ता, तं जहा - णाणबोधी, दंसणबोधी, चरित्तबोधी । १३. स्थानांगवृत्ति, पत्र १२३ : बोधिः सम्यग्बोधः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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