________________
परिशिष्ट-३ सूक्त और सुभाषित
जो भावना है, वह संसार है।
पटिसोओ तस्स उत्तारो (०२२)
प्रतित्रोत मोक्ष का पथ है-प्रवाह के प्रतिकूल चलना मुक्ति
का मार्ग है ।
असं किलि ट्ठेहि समं वसेज्जा । ( चू०२/६) क्लेश न करने वालों के साथ रहो । संधि अपगमपर्ण (०२।१२) आत्मा से आत्मा को देखो । तमाह लोए पीवी
सो जीव संजमजीवि (०२।१५)
वही प्रतिबुद्धजीवी है, जो संयम से जीता है।
Jain Education International
५७५
अप्पा खलु सययं रक्खियव्वो । सन्विदिएहि सुसमाहिएहि । अरक्सिओ जाइप उद
सुरखिओ सहाण मुख । ( ० २०१६)
सब इन्द्रियों को सुसमाहित कर आत्मा की सतत रक्षा करनी चाहिए । अरक्षित आत्मा जातिय (जन्म-मरण) को प्राप्त होता है और सुरक्षित आत्मा सब दुःखों से मुक्त हो जाता है।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org