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दसवे आलियं ( दशवेकालिक )
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३५ - रूढा
बहुसंभूषा
थिरा ऊसढा वि
पशुवाओ
गभिया ससाराओ ति आलवे ॥
३६ तहेव संखड कि
नच्चा
कज्जे ति नो वए। तेण वा वि
त्ति
सुतिस्थति य
आवगा ॥
३७-संब
पणियट्ठ त्ति
बहुसमाणि आवगाणं
संसडि
३६- बहुवाहा
य |
३८-तहा मईओ पुष्णाओ कायतिज्जर ति नो बए । नावाहि तारिमाओ ति पाणिपेज सिनो बए ॥
सलिलोदगा बहुवियोगा
एवं
भासेज्न
४० -तहेब
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बूया
तेगं ।
तित्याणि
वियागरे ॥
सावन
अगाहा
जोगं
परस्सट्ठाए
निद्विषं ।
कीरमाणं ति वा नच्चा
सावर्ज
न लवे
मुणी ॥
यावि
पन्नवं ॥
४१ - "सुकडे ति सुपक्के ति सुचिन्ने सुह मडे । सुनिट्टिए सुलट्ठे ति
सावन् बज्जए
वज्जए मुणी ॥
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रूढ़ा बहुसम्भूताः,
स्थिरा उच्छूता अपि च । गभिताः प्रसृताः,
ससारा इत्यालपेत् ||३५|
तथैव संस्कृति ज्ञात्वा, कार्यमिति
वदेत्।
स्तेनकं वाऽपि वध्य इति,
सुतीर्था इति चापगाः ॥ ३६ ॥
संस्कृति संस्कृति ब्रूयात्, पगिता इति स्तेनकम्
समान तीन
आपगानां व्यागृणीयात् ॥ ३७ ॥
तथा नद्यः पूर्णाः,
कायतार्या इति नो वदेत् । नौभिस्तार्या इति,
प्राणिपेया इति नो वदेत् ॥ ३८ ॥
बहुप्रभृता अगाथा
सलिलोपीडोयकाः ।
बहुविस्तृतोदकाश्चापि,
एवं भाषेत प्रज्ञावान् ॥ ३६ ॥
तथैव साब पो
परवाच निष्ठितम्।
क्रियमाणमिति वा ज्ञात्त्रा, साव न लयेत् मुनिः ॥ ४० ॥
सुकृतमिति सुपक्यमिति, सुच्छिन्नं सुहृतं मृतम् । सुनिष्ठितं सुलष्टमिति साय वर्जयेत् मुनिः ॥४
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अध्ययन ७ श्लोक ३५-४१
३५ - ( प्रयोजनवश बोलना हो तो ) औषधियाँ अंकुरित हैं, निष्पन्न- प्राय: हैं, स्थिर हैं, ऊपर उठ गई हैं, भुट्टों से रहित हैं, भुट्टों से सहित हैं, धान्य-कण सहित हैं इस प्रकार बोले ।
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३६-३७ इसी प्रकार सी (जीमनवार) और कृत्य – मृतभोज को जानकर कर चोर मारने योग्य है और नदी अच्छे घाट वाली है इस प्रकार न कहे प्रयोजन कहता हो तो) बड़ी कोसड़ी पोर को णितार्थ (धन के लिए जीवन की बाजी लगाने वाला ) ४ और 'नदी के घाट प्रायः सम हैं इस प्रकार कहा जा सकता है ।
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३८-३९ -- तथा नदियाँ भरी हुई हैं, शरीर के द्वारा पार करने योग्य हैं, नौका के द्वारा पार करने योग्य हैं और तट पर बैठे हुए प्राणी उनका जल पी सकते हैं इस प्रकार न कहे (प्रयोजन कहना हो तो) ( नदियां ) प्रायः भरी हुई हैं, प्रायः अनाथ बहु दूसरी नदियों के द्वारा जल का वेग बढ़ रहा है, बहुत विस्तीर्ण जल वाली हैं- प्रज्ञावान् भिक्षु इस प्रकार कहे ।
४० - इसी प्रकार दूसरे के लिए किए गए अथवा किए जा रहे सावध व्यापार को जानकर मुनि सावद्य वचन न बोले। जैसे
४१ - बहुत अच्छा किया है (भोजन आदि), बहुत अच्छा पकाया है (घेवर आदि), बहुत अच्छा छेदा है पत्र- शाक आदि), बहुत अच्छा हरण किया है (माक की तिक्तता आदि), बहुत अच्छा मरा है ( दाल या सत्तू में घी आदि ), बहुत अच्छा रसनिष्पन्न हुआ है (तेमन आदि में बहुत ही इष्ट है (चावल आदि) मुनि न सावद्य वचनों का प्रयोग न करे ।
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