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________________ पिंडेसणा ( पिण्डेषणा ) इसका अर्थ यह हुआ कि सकाम दृष्टि वाले लोग विनिमय से आगे कुछ देख नहीं पाते; किन्तु जिन्हें निष्काम दृष्टि मिली है, वे लोग संयम का स्वतन्त्र मूल्य आंकते हैं और इसलिए वे प्रतिफल की कामना किए बिना संयम साधना में सहयोगी बनते हैं । २६१ अध्ययन ५ ( प्र० उ०) श्लोक १०० टि० २३३ : एक संन्यासी था । वह एक भागवत के यहाँ आया और बोला- “मैं तुम्हारे यहाँ चातुर्मास-काल व्यतीत करना चाहता हूँ । मुझे विश्वास है कि तुम मेरे निर्वाह का भार वहन कर सकोगे ।" भागवत ने कहा- "आप मेरे यहाँ वर्षाकाल व्यतीत कर सकते हैं किन्तु उसके लिए आपको मेरी एक शर्त स्वीकार करनी होगी। वह यह है कि आप मेरे घर का कोई भी काम न करेंगे।" परिव्राजक ने भागवत की शर्त मान ली । संन्यासी ठहर गया । भागवत भी संन्यासी की असन बसन आदि से खूब सेवा करने लगा । एक दिन रात्रि के समय आकर चोरों ने भागवत का घोड़ा चुरा लिया और प्रभात होता जानकर उसे नदी के तट पर के वृक्ष से बांध दिया। संन्यासी प्रातः नित्य नियमानुसार स्नान करने नदी पर गया। वहीं उसने घोड़े को वृक्ष से बंधा देखा । संन्यासी से रहा नहीं गया और वह झट से भागवत के घर आया। अपनी प्रतिज्ञा को बचाते हुए भागवत से बोला- “मैं नदी पर अपना वस्त्र भूल आया हूँ ।" भागवत ने नौकर को वस्त्र लाने नदी पर भेजा । नौकर ने घोड़े को नदी के तट पर वृक्ष से बंधा देखा और अपने स्वामी से सब बात कही । भागवत संन्यासी के भाव को ताड़ गया और संन्यासी से बोला- “आप अपनी प्रतिज्ञा को भूल गये । अब मैं आपकी सेवा नहीं कर सकता, क्योंकि निर्विष्ट - किसी से सेवा की अपेक्षा रख कर उसकी सेवा करने का फल अल्प होता है। " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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