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________________ दसवेआलियं ( दशवकालिक ) अध्ययन ४: सूत्र ५-६ ५-आऊ चित्तमंतमक्खाया आपश्चित्तवत्यः आख्याता अनेकअणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थ- जीवाः पृथक्सत्वा अन्यत्र शस्त्रपरिणएणं । परिणताभ्यः ॥५॥ ५- शस्त्र-परिणति से पूर्व अप् चित्तवान (सजीव) कहा गया है। वह अनेक जीव और पृथक् सत्वों (प्रत्येक जीव के स्वतन्त्र अस्तित्व) बाला है। ६-ते चित्तमंतमक्खाया तेजश्चित्तवत आख्यातं अनेक- अणेगजीवा पढोसत्ता अन्नत्थ सत्थ- जीवम् पृथकसत्त्वम् अन्यत्र शास्त्रपरिणएणं। परिणतात् ॥६॥ ६ शस्त्र-परिणति से पूर्व तेजस् चित्त. वान् (सजीव) कहा गया है। वह अनेक जीव और पृथक् सत्त्वों (प्रत्येक जीव के स्वतन्त्र अस्तित्व) वाला है। ७-वाऊ चित्तमंतमक्खाया वायुश्चित्तवान् अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थ- जीवः पथकसत्त्वः परिणएणं । परिणतात् ॥७॥ आख्यातः अनेक- ७... शस्त्र परिणति से पूर्व चाय चित्त. अन्यत्र शास्त्र. बान् (मजीव) कहा गया है। वह अनेक जीव और पृथक् सत्त्वों (प्रत्येक जीन के स्वतन्त्र अस्तित्व) वाला है। ८ वणस्सई चियमंतमवखाया वनस्पतिश्चित्तवान् आख्यातः ८-शस्त्र-परिणति से पूर्व वनस्पति अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ अनेकजीवः पृथक्सत्वः अन्यत्र शस्त्र- चित्तवती (सजीब) कही गई है । वह अनेक सत्थपरिणएणं, तं जहा-अग्गबीया परिणतात् तद्यथा----अग्रबीजा: मूल जीव और पृथक् सत्त्वों (प्रत्येक जीव के स्वतन्त्र अस्तित्व) वाली है। उसके प्रकार मूलबीया पोरबीया खंधबीया बीयरुहा बोजाः पर्व बीजाः स्कन्धबीजाः बीज ये हैं - अग्र-बीज६, मुल-बीज, पर्व-बीज, सम्मुच्छिमा तणलया। रुहा सम्मुच्छिमाः तृणलताः । स्कन्ध-बीज, बीज-रुह, सम्मूछिम", तृण'८ और लता। वणस्सइकाइया सीया चित्तमंत- वनस्पतिकायिकाः सबीजाः चित्तवन्त शस्त्र-परिणति से पूर्व बीजपर्यन्त (मुल मक्खाया अणेगजीवा पढोसता अन्नत्य आख्याताः अनेकजीवाः पृथकसत्त्वाः अन्यत्र से लेकर बीज तक) वनस्पति-कायिक चित्त वान् कहे गये हैं। वे अनेक जीव और पृथक सत्यपरिणएणं । शस्त्रपरिणतेभ्यः ॥८॥ सत्त्वों (प्रत्येक जीव के स्वतन्त्र अस्तित्व) वाले हैं। ६--से जे पुण इमे अणेगे अथ ये पुनरिमे अनेके बहवः प्रसा: --और ये जो अनेक बहुत त्रस प्राणी बहवे तसा पाणा तं जहा--अंख्या प्राणिनः तद्यथा-अण्डजाः पोतजाः हैं,२१ जैसे--अण्डज,२२ पोतज,२३ जरायुज,२४ रसज,२५ संस्वेदज,२६ पोयया जराज्या रसया संसेडमा जरायुजाः रसजा: संस्वेदजाः सम्मच्छिमाः सम्मूच्छेनज,२७ उद्धिज,२८ औपपातिक सम्मुच्छिमा उब्भिया उववाइया। उद्भिदः औपपातिकाः । वे छठे जीव-निकाय में आते हैं। जेसि केसिंचि पाणाणं अभिक्कंतं येषां केषाञ्चित् प्राणिनाम् अभिकान्तम् पडिक्कंतं संकृचियं पसारिय' स्यं प्रतिकान्तम् संकुचितम् प्रसारितम् रुतम् भंत तसियं पलाइयं आगडगडविन्नाया- भ्रान्तम् अस्तम् पलायितम्, आगतिगति विज्ञातारः जिन किन्हीं प्राणियों में सामने जाना, पीछे हटना, संकुचित होना, फैलना, शब्द करना, इधर-उधर जाना, भयभीत होना, दौड़ना--ये क्रियाएँ हैं और जो आगति एवं गति के विज्ञाता हैं वे त्रस हैं। Jain Education Intemational ucation international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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