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________________ प्रकाशकीय दलिय ( दशवैकालिक) का यह दूसरा संस्करण जनता के हाथों में है । इसका प्रथम संस्करण सरावगी चेरिटेबल फण्ड के अनुदान से स्वर्गीय श्री महादेवलालजी सरावगी एवं उनके दिवंगत पुत्र पन्नालालजी सरावगी (एम० पी०) की स्मृति में श्री जैन श्वेताम्बर तेरापन्थी महासभा, कलकत्ता की ओर से माघ महोत्सव, वि० सं० २०२० (सन् १९६४ ) में प्रकाशित हुआ था । वह संस्करण कभी का समाप्त हो गया था । उसके दूसरे संस्करण की माँग थी और वह 'जैन विश्व भारती', लाडनूं के द्वारा प्रकाशित किया जा रहा है । परमपूज्य श्राचार्यदेव एवं उनके इंगित और प्राकार पर सब कुछ न्यौछावर कर देने वाले मुनि-वृन्द की यह समवेत कृति प्रागमिक कार्यक्षेत्र में युगान्तकारी है, इस कथन में पतिशयोक्ति नहीं, पर तथ्य है। बहुमुखी प्रवृतियों के केन्द्र प्राणपुत पाचार्य श्री तुलसी ज्ञानक्षितिज के महान तेजस्वी रवि है और उनका मंडल भी शुख-नक्षत्रों का तपोपुज्य है, यह इस धम-साध्य कृति से स्वयं फलीभूत है। श्राचार्यश्री ने ग्रागम-संपादन के कार्य के निर्णय की घोषणा सं० २०११ की चैत्र सुदी १३ को की। उसके पूर्व से ही श्रीचरणों में विनम्र निवेदन रहा- आपके तत्वावधान में आगमों का संपादन और अनुवाद हो - यह भारत के सांस्कृतिक श्रभ्युदय की एक मूल्यवान् कड़ी के रूप में अपेक्षित है । यह अत्यन्त स्थायी कार्य होगा जिसका लाभ एक, दो, तीन ही नहीं अपितु श्रचिन्त्य भावी पीढ़ियों को प्राप्त होता रहेगा । इस आगम ग्रन्थ के प्रकाशन के साथ मेरी मनोभावना अंकुरित ही नहीं, फलवती और रसवती भी हुई थी। इसका प्रकाशन अत्यन्त समादृत हुआ और माँग की पूर्ति के लिए यह अपेक्षित दूसरा संस्करण प्रकाशित हो रहा है । सुनिधी मते संघ के अप्रतिम मेधावी सन्त हैं उनका धम पग-पग पर मुखरित हुआ है। प्राचार्यश्री तुलसी की दृष्टि और मुनिश्री नथमलजी की सृष्टि का यह मणिकांचन योग है। आगम का यह प्रथम पुष्प होने के कारण मुनिश्री को इसके विवेचन में सैकड़ों ग्रंथ देखने पड़े हैं। इनके दृढ़ अध्यवसाय और पैनी दृष्टि के कारण ही यह ग्रन्थ इतना विशद और विस्तृत हो सका है। नयी दुलहराज ने पाद्योपान्त अवलोकन कर इस बिना इतना शीघ्र पुनः प्रकाशन कठिन ही नहीं असम्भव होता । इस आगम ग्रन्थ के अर्थ-व्यय की पूर्ति बेगराज भँवरलाल चेरिटेबल ट्रस्ट के अनुदान से हो रही है। इसके लिए संस्थान चोरड़िया बन्धु एवं उक्त न्यास के प्रति कृतज्ञ है। संस्करण को परिष्कृत करने में बड़ा यम किया है। उनके अथक परिश्रम के जैन विश्वभारती के अध्यक्ष श्री खेमचन्दजी सेठिया, मन्त्री श्री सम्पतरायजी भूतोड़िया प्रादि के प्रति भी मैं कृतज्ञ हूं, जिनका सहृदय सहयोग मुझे निरन्तर मिलता रहा। श्री देवीप्रसाद जायसवाल (कलकत्ता) एवं श्री मन्नालालजी बोर के प्रति भी मेरी कृतमता है जिनके सहयोग से कार्य समय पर सम्पन्न हो पाया है। आशा है, इस दूसरे संस्करण का पूर्ववत् ही स्वागत होगा । दिल्ली कार्तिक कृष्णा १५, २०३१ (२५०० महावीर निर्वाण दिवस ) Jain Education International For Private & Personal Use Only श्रीचन्द रामपुरिया निदेशक आगम एवं साहित्य प्रकाशन www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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