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नायाधम्मकहाओ
प्रथम अध्ययन : टिप्पण २७-३१ शब्द को विषयभूत मानकर व्याख्या की है, जैसे स्वकीय और परकीय काष्ठ-स्तम्भ, जिसकी परिक्रमा करते हुए बैल आदि उस धान का मर्दन कुटुम्ब-विषयक मंत्रणाओं आदि में उसका मत पूछा जाता था। करते हैं और तुषों से उसे पृथक करते हैं। वैसे ही सकल मंत्रीमंडल अभय
यहां चिन्तनीय यह है कि जब मंत्र आदि का सम्बन्ध कुटुम्ब से जोड़ा को केन्द्र मानकर आलोच्य विषय पर निर्णय लेता था। धान्य कणों के समान है तो फिर कार्य और कारण का सम्बन्ध उससे क्यों नहीं जोड़ा? कार्य और हर विषय का विवेचन करता था, इसलिए उसे मेढ़ी कहा गया। कारण भी तो स्वकीय और परकीय कुटुम्बों से सम्बन्धित हो सकते हैं। यदि प्रमाण--जैसे प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से सिद्ध पदार्थ अव्यभिचारी ऐसा होता है तो कुटुम्ब शब्द की योजना सबसे पहले होनी चाहिए थी और रूप से विधि और निषेध के विषय बनते हैं, वैसे ही अभय विधि और विभक्ति का प्रयोग भी भिन्न होना चाहिए था। सम्बन्ध में षष्ठी विभक्ति का निषेध अर्थात् कर्तव्य और अकर्तव्य में प्रमाण था। प्रयोग होता तो अर्थबोध में भी सुगमता रहती। यदि आर्ष प्रयोग मानकर षष्ठी आधार--प्रत्येक कार्य में उपकारी होने के कारण वह सबका के स्थान में सप्तमी मानें तो भी समस्या का सही समाधान नहीं मिलता। अत: आधार था।" कुटुम्ब शब्द को कार्य, कारण, मंत्रणा आदि के समान किसी विशेष प्रवृत्ति आलम्बन--जैसे गड्ढे में गिरा हुआ व्यक्ति रस्सी आदि के सहारे का ही सूचक मानना चाहिए। इस संदर्भ में इसका अर्थ सामुदायिक कार्य बाहर निकल जाता है, वैसे ही वह आपद्-गर्त में गिरे हुए व्यक्तियों का मानना संगत लगता है।
निस्तारक होने से आलम्बन था।' ___ संस्कृत शब्दकोष से भी इसका समर्थन होता है। उसके अनुसार चक्षु--मंत्री, अमात्य आदि का विविध कार्यों में प्रवृत्तिकुटुम्ब का अर्थ होता है कर्तव्य या देखभाल।
निवृत्ति विषयक पथ-दर्शन करता था, इसलिए वह सबका लोचन--चक्षु भागवत पुराण के अनुसार भी कुटुम्ब का अर्थ है--प्रत्येक वस्तु की था।' देखभाल और चिन्ता।
३०. राजा को सम्यक् परामर्श देने वाला (विइण्णवियारे) २८. मंत्रणाओं, गोपनीय कार्यों रहस्यों (मंतेसु य गुज्झेसु य अभय जो विचार देता था वह सम्राट श्रेणिक, मंत्री परिषद तथा रहस्सेसु य)
राज्यसभा को सहज मान्य हो जाता था इसलिए वह विचार प्रदान करने इन तीन शब्दों में कुछ अर्थ भेद है, जैसे--
वाले व्यक्ति के रूप में सुविदित था। वृत्तिकार ने इसका अर्थ मंत्र--देश और राज्य के हित चिन्तन के लिए एकान्त में
वितीर्णविचार--सब कामों में विचार देने वाला किया है। वृत्ति में वैकल्पिक पर्यालोचन, मंत्रणा करना।
पाठ “विण्णवियार" मानकर उसका अर्थ जनता के प्रयोजन को राजा तक गुह्य--गोपनीय विषयक । गुह्य छिद्रों की रोकथाम के लिए किया
के लिए किया पहुंचाने वाला किया गया है। जानेवाला एकान्त चिन्तन । वृत्तिकार ने इसकी व्याख्या भिन्न प्रकार से की है। उनके अनुसार ऐसे अपराध लज्जास्पद होने के कारण गोपनीय
सूत्र १७ होते हैं।
३१. मुट्ठी भर कमर बल खाती हुई रेखाओं से युक्त थी (करयलरहस्य--धर्म-विरुद्ध, लोक-विरुद्ध, और नीति-विरुद्ध, अपराधों परिमित-तिवलियवलियमज्झा) की रोकथाम के लिए किया जाने वाला एकान्त चिन्तन।'
करतल परिमित का अर्थ है जो दोनों हथेलियों के मध्य समा सके।
वृत्तिकार ने इसका अर्थ मुष्टिग्राह्य किया है। उसका तात्पर्य भी यही है। २९. वह मेढ़ी, प्रमाण, आधार, आलम्बन और चक्षु (मेढी-पमाणे उस पर तीन रेखाएं थीं। प्रस्तुत पद में प्रयुक्त 'वलिय' पद का अर्थ आधारे आलम्बण चक्खू)
वृत्तिकार ने बलवान किया है--यह प्रासंगिक नहीं लगता। यहां इसका अर्थ मेढ़ी--खला निकालते समय धान के ढेर के मध्य रोपा जाने वाला बलखाती हुई होना चाहिए।
१. ज्ञातावृत्ति पत्र--तथा कुटुम्बेषु च स्वकीयपरकीयेषु विषयभूतेसु ये मन्त्रादयो
निश्चयान्तास्तेषु आप्रच्छनीयः ।। २. आप्टे ३. भागवत पुराण १/९/३९ ४. ज्ञातावृत्ति, पत्र-१३--मन्त्रा: मन्त्रणानि पर्यालोचनानि तेषु च गुह्यानीव
गुह्यानि लज्जनीयव्यवहारगोपितानि, तेषु च रहस्यानि--एकान्तयोग्यानि। ५. वही--मेढ़ित्ति-खलकमध्यवर्तिनी स्थूणा, यस्यां नियमिता गोपक्तिकार्धान्यं गाहयति, तद्वद्यमालम्ब्य सकलमन्त्रिमण्डलं मन्त्रणीयार्थान् धान्यमिव विवेचयति
सो मेढ़ी। ६. वही--प्रमाणं प्रत्यक्षादि, तद्वद्यः तवष्टार्थानामव्यभिचारित्वेन तथैव
प्रवृत्तिनिवृत्तिगोचरत्वात् स प्रमाणम् । ७. वही--आधारस्येव सर्वकार्येषु लोकानामुपकारित्वात्। ८. वही--आलम्बनं - रज्जवादि, तद्वदापद्गादि निस्तारकत्वादालम्बनम् ९. वही--चक्षुः लोचनं तद्वल्लोकस्य मन्त्र्यमात्यादिविविधकार्येषु प्रवृत्ति-निवृत्ति
विषयप्रदर्शकत्वाच्चक्षुरिति। १०. ज्ञातावृत्ति, पत्र-१४--विइण्ण वियारे' ति वितीर्णो-राज्ञानुज्ञातो विचार:-अवकाशो यस्य विश्वसनीयत्वात् असौ वितीर्णविचार: सर्वकार्यादिष्विति प्रकृतं अथवा
विण्णवियारे' विज्ञापितो राज्ञो लोकप्रयोजनानां निवेदयिता। ११. वही, पत्र-१५--वलितो-बलवान्। १२. आप्टे
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