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________________ नायाधम्मकहाओ ३७ ११५. लए णं से मेहे कुमारे अम्मापियरमणुक्त्तमाणे तुसिणीए सचिट्ठइ ।। ११६. लए गं से सेगिए राया कोहुविधपुरिसे सहावेद, सहावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! मेहस्स कुमारस्स महत्यं महग्धं महरिहं विउलं रायाभिसेयं उवट्ठवेह || ११७. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा मेहस्स कुमारस्स महत्थं महग्धं महरिहं विउ रायाभिसेयं उद्ववेति ।। ११८. तए गं से सेणिए राया बहूहिं गणनायगेहि व जाव संधिवालेहि यसद्धिं संपरिवुडे मेहं कुमारं अट्ठसएणं सोवण्णियाणं कलसाणं एवं रूप्पमयाणं कलसाणं मणिमयाणं कलसाणं सुवण्णरुपमयाणं कलसाणं, सुवण्णमणिमयाणं कलसाणं रुप्पमणिमयाणं कलसाणं सुवग्णरुप्पमणिमयाणं कलसाणं, भोमेज्जाणं कलसाणं सव्वोदएहिं सव्वमट्टियाहिं सव्वपुण्केहिं सव्वगंधेहिं सव्वमल्लेहिं सब्वोसहीहिं सिद्धत्वएहि व सब्बिडीए सव्यज्जुईए सव्वबलेणं जाव दुंदुभिनिग्घोस गाइयरवेणं महया महया रायाभिसेएणं अभिसिंचद्द, अभिसिचित्ता करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं क्यासी जय-जय नंदा! जय जय भद्दा! जय-जय नंदा! भद्दं ते अजियं जिणाहि, जियं पालयाहि, जियमज्झे साहि, (अजिपं जिणाहि सत्तुपवसं, जियं च पातेहि मित्तपक्लं) इंदो इव देवाणं चमरो इव असुराणं धरणो इव नागाणं चंदो इव ताराणं भरहो इव मणुयाणं रायगिहस्स नगरस्स अन्नेसिं च बहूणं गामागर - नगर - खेड - कब्बड - दोणमुहमडंब पट्टण - आसम - निगम संबाह-सण्णिवेसाणं आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगतं आणा- ईसर - सेणावच्च कारेमाणे पालेमाणे महयाहय - नट्ट - गीय- वाइय-तंती - तल-तालतुडिय - घण- मुइंग - पडुप्पवाइयरवेणं विउलाई भोगभोगाई भुंजमा विहराहि त्ति कट्टु जय-जय - सद्दं पउंजति ।। ११९. तणं से मेहेराया जाए - महयाहिमवंत-महंत - मलय-मंदर -- महिंदसारे जाव रज्जं पसालेमाणे विहरइ ।। १२० लए णं तस्स मेहस्स रण्णो (तं मेहं रावं?) अम्मापियरो एवं Jain Education International प्रथम अध्ययन : सूत्र ११५-१२० ११५. कुमार मेष माता-पिता की इच्छा का अनुवर्तन करता हुआ मौन हो गया। ११६. राजा श्रेणिक ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुला कर इस प्रकार कहा- देवानुप्रियो ! शीघ्र ही कुमार मेघ के लिए महान अर्थ वाला महान मूल्य वाला और महान अर्हता वाला विपुल राज्याभिषेक (राज्याभिषेक योग्य सामग्री) उपस्थित करो । ११७. उन कौटुम्बिक पुरुषों ने कुमार मेघ के लिए महान अर्धवाला, महान मूल्य वाला और महान अर्हता वाला विपुल राज्याभिषेक उपस्थित ११८. बहुत से गणनायक यावत् सन्धिपाल के साथ संपरिवृत होकर उस श्रेणिक राजा ने कुमार मेघ को एक सौ आठ स्वर्णमय कलशों, रुप्यमय कलशों, मणिमय कलयों, सुवर्ण रूप्यमय कलशों सुवर्ण मणिमय कलशों रुम्य-मणिमय कलशों, सुवर्ण रूप्य मणिमय कलशों और भौमेय (मिट्टी के) कलशों से सब प्रकार के उदक, सब प्रकार की मिट्टी फूल, गन्धद्रव्य, माला, औषधि, श्वेत सर्षप, सम्पूर्ण ऋद्धि, सम्पूर्ण सुति, सम्पूर्ण बल यावत् दुन्दुभि के निर्घोष से नादित शब्द के द्वारा महान राज्याभिषेक से अभिषिक्त किया। अभिषिक्त कर दोनों हथेलियों से निष्पन्न संपुट आकार वाली अंजली को सिर के सम्मुख घुमाकर मस्तक पर टिका कर इस प्रकार कहा- हे नन्द ! (समृद्ध पुरुष ) तुम्हारी जय हो, जय हो । हे भद्र पुरुष ! तुम्हारी जय हो, जय हो । हे नन्द ! तुम्हारी जय हो, जय हो, भद्र हो । अजित को जीतो । जित की पालना करो। जीते हुए लोगों के मध्य में निवास करो । ( अजित शत्रु पक्ष को जीतो, जित मित्र पक्ष का पालन करो।) जैसे देवों में इन्द्र, असुरों में चमरेन्द्र, नागों में धरणेन्द्र, तारागण में चन्द्र और मनुष्यों में भरत की भांति राजगृह नगर के तथा अन्य बहुत सारे ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्बट, द्रोणमुख, मडम्ब, पत्तन, आश्रम, निगम, संबाध और सन्निवेशो का आधिपत्य, पौरपत्य, स्वामित्व, भर्तृत्व महत्तरत्व, आशा-ऐश्वर्य और सेनापतित्व करते हुए, उनका पालन करते हुए वह आहत नाट्यों, गीतों तथा कुशल वादक के द्वारा बजाए गए वादित्र, तंत्री, तल, ताल, त्रुटित, घन और मृदंग की महान ध्वनि से युक्त विपुल भोगाई भोगों को भोगते हुए विहार करो इस प्रकार उसने जय-जय शब्द का प्रयोग किया। -- ११९. वह कुमार मेघ राजा हो गया। महान हिमालय, महान, मलय, मेरु और महेन्द्र की भांति यावत् राज्य का प्रशासन करता हुआ विहार करने लगा। १२०. उस समय मेघ के ( उस राजा मेघ को ? ) माता-पिता इस प्रकार For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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