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________________ आमुख नायाधम्मकहाओ का दूसरा श्रुतस्कन्ध बहुत संक्षिप्त है। प्रथम श्रुतस्कन्ध ज्ञातप्रधान है और दूसरा श्रुतस्कन्ध धर्मकथा प्रधान है। इसके दस वर्ग हैं। उनमें काली नाम का प्रथम अध्ययन संक्षिप्त आकार वाला है। अग्रिम अध्ययन केवल सूचना मात्र है। ज्ञात के उन्नीस अध्ययन विस्तार से लिखे गए हैं और उनका विषय स्पष्ट है। धर्मकथा के दस वर्ग हैं और अध्ययन सैंकड़ो सैंकड़ो हैं। काली के सिवाय सब कथाएं अति संक्षिप्त हैं। न उनसे कथ्य का बोध होता है और न कोई कथा का निष्कर्ष सामने आता है। हम निश्चयपूर्वक नहीं कह सकते कि सूत्रकार ने यह शैली क्यों अपनाई? क्या इतना लम्बा पाठ कण्ठस्थ रखना कठिन था? क्या लिपि की कठिनाई के कारण संक्षिप्त किया गया? क्या सूत्रकार ने कथावस्तु का विस्तार से वर्णन किया और लिपिकाल में उसे संक्षिप्त कर दिया गया? कुछ भी हो धर्मकथा का उपलब्ध स्वरूप अवश्य प्रश्न पैदा करता है। ज्ञात के उन्नीस अध्ययन आध्यात्मिक चिंतन की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं। यदि उसी प्रकार धर्मकथा के अध्ययन विस्तृत होते तो दूसरा श्रुतस्कन्ध अध्यात्म की बहुत बड़ी सम्पदा बन जाती। इसका एक अध्ययन विस्तृत है उससे साधना के उतार चढ़ाव और साधना में आने वाली विघ्न बाधाओं को समझने का अवसर मिलता है। निष्कर्ष की भाषा में यही कहा जा सकता है कि संक्षिप्तीकरण का कारण कुछ भी रहा हो, नायाधम्मकहाओ का पाठक धर्मकथा की बहुमूल्य सामग्री से वंचित रहा है। बस 'भवितव्यं भवत्येव' इसी बिंदु पर हमें संतोष करना चाहिए। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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