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________________ नायाधम्मकहाओ ३४१ सोलहवां अध्ययन : सूत्र २२१-२२९ २२१. तए णं से कण्हे वासुदेवे कोंतिं पिउच्छं एवं वयासी--जं २२१. कृष्ण वासुदेव ने बुआ कुन्ती से इस प्रकार कहा--विशेष--बुआ! नवरं--पिउच्छा! दोवईए देवीए कत्थइ सुई वा खुइं वा पवत्तिं वा यदि द्रौपदी देवी का कहीं कोई सुराख, चिह्न या वृत्तान्त मिल जाए तो लभामि, तो णं अहं पायालाओ वा भवणाओ वा अद्धभरहाओ वा वह पाताल में, भवन में अथवा अर्द्धभरत क्षेत्र में कहीं पर भी हो मैं समंतओ दोवइं देविं साहत्थिं उवणेमि त्ति कटु कोंतिं पिउच्छ वहां से द्रौपदी देवी को हाथों-हाथ ले आऊं--यह कह कर उन्होंने सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ।। बुआ कुन्ती को सत्कृत किया। सम्मानित किया। सत्कृत-सम्मानित कर उसे प्रतिविसर्जित किया। २२२. तए णं सा कोंती देवी कण्हेणं वासुदेवेणं पडिविसज्जिया समाणी जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया।। २२२. कृष्ण वासुदेव से प्रतिविसर्जित हुई कुन्ती देवी जिस दिशा से आई थी उसी दिशा में चली गई। २२३. तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! बारवईए नयरीए सिंघाडगतिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु महया-महया सद्देणं उग्धोसेमाणा-उग्घोसेमाणा एवं वयह--एवं खलु देवाणुप्पिया! जुहिट्ठिलस्स रण्णो आगासतलगंसि सुहपसुत्तस्स पासाओ दोवई देवी न नज्जइ केणइ देवेण वा दाणवेण वा किण्णरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा हिया वा निया वा अवक्खित्ता वा । तं जो णं देवाणुप्पिया! दोवईए देवीए सुइं वा सुई वा पवत्तिं वा परिकहेइ, तस्स णं कण्हे वासुदेवे विउलं अत्थसंपयाणं दलयइत्ति कटु घोसणं घोसावेह, घोसावेत्ता एयमाणत्तिय पच्चप्पिणह।। २२३. कृष्ण वासुदेव ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। उन्हें बुलाकर इस प्रकार कहा--देवानुप्रियो! तुम जाओ, द्वारवती नगरी में दोराहों, तिराहों, चौराहों, चौकों, चतुर्मुखों, राजमार्गों और मार्गों में उच्चस्वर से उद्घोषणा करते हुए इस प्रकार कहो--देवानुप्रियो! इस प्रकार अपने भवन के ऊपर खुले में सुखपूर्वक सोये हुए राजा युधिष्ठिर के पास से द्रौपदी देवी का न जाने किस देव, दानव, किन्नर, किंपुरुष, महोरग अथवा गन्धर्व ने अपहरण कर लिया है या उसे कोई कहीं ले गया है या किसी कूप, गर्त आदि में गिरा दिया है। अत: .देवानुप्रियो! जो भी द्रौपदी देवी का सुराख, चिह्न अथवा वृत्तान्त बताएगा, कृष्ण वासुदेव उसे विपुल अर्थ-सम्पदा प्रदान करेगा। इस प्रकार घोषणा करो। घोषणा कर इस आज्ञा को मुझे प्रत्यर्पित करो। २२४. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव पच्चप्पिणंति ।। २२४. उन्होंने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया यावत् प्रत्यर्वित किया। २२५. किसी समय कृष्ण वासुदेव अपने अन्त:पुर के भीतर रनिवास से ___ संपरिवृत हो प्रवर सिंहासन पर आसीन थे। २२५. तए णं से कण्हे वासुदेवे अण्णया अंतोअंतेउरगए ओरोह- . संपरिवुडे सीहासणवरगए विहरइ। दोवईए उवलद्धि-पदं २२६. इमं च णं कच्छुल्लनारए जाव झत्ति-वेगेण समोवइए॥ द्रौपदी का उपलब्धि पद २२६. इधर कच्छुल्ल नारद यावत् पूरे वेग के साथ उतरा। २२७. तए णं से कण्हे वासुदेवे कच्छुल्लनारयं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता आसणाओ अब्भुढेइ, अब्भुढेत्ता अग्घेणं पज्जेणं आसणेणं उवनिमतेइ।। २२७. कृष्ण वासुदेव ने कच्छुल्ल नारद को आते हुए देखा। देखकर आसन से उठे। उठकर उसे अर्घ्य; पद्य और आसन से उपनिमन्त्रित किया। २२८. तए णं कच्छुल्लनारए उदगपरिफोसियाए दब्भोवरिपच्चत्युयाए भिसियाए निसीयइ, निसीइत्ता कण्हं वासुदेवं कुसलोदंतं पुच्छइ।। २२८. कच्छुल्ल नारद जल सिक्त डाभ पर बिछी वृषिका पर बैठा। बैठकर कृष्ण वासुदेव से कुशल समाचार पूछे। २२९. तए णं से कण्हे वासुदेवे कच्छुल्लनारयं एवं वयासी--तुमंणं देवाणुप्पिया! बहूणि गामागर-नगर-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंब- पट्टण-आसम-निगम-संबाह सण्णिवेसाई आहिंडसि, बहूण य राईसर-तलवर-माइंबिय कोडुबिय-इन्भ-सेट्ठि-सेणावइसत्यवाह-पभिईणं गिहाई अणुपविससि, तं अत्थियाइं ते कहिंचि दोवईए देवीए सुई वा खुई वा पवित्ती वा उवलद्धा? २२९. कृष्ण वासुदेव ने कच्छुल्ल नारद से इस प्रकार कहा--देवानुप्रिय! तुम बहुत से ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्बट, द्रोणमुख, मडंब, पत्तन, आश्रम, निगम, संबाह, सन्निवेश आदि में घूमते हो और बहुत से राजा, ईश्वर, तलवर, मडम्बिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह आदि के घरों में प्रवेश करते हो अत: तुम्हें कहीं पर द्रौपदी देवी का सुराख, चिह्न अथवा वृत्तान्त मिला है? Jain Education Intemational For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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