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________________ सोलहवां अध्ययन : सूत्र १९३-२०० ३३६ नायाधम्मकहाओ १९३. तस्स णं पउमनाभस्स रण्णे सत्त देवीसयाई ओरोहे होत्था॥ १९३. उस राजा पद्मनाभ के सात सौ देवियों का अन्त:पुर था। १९४. तस्स णं पउमनाभस्स रण्णो सुनाभे नामं पुत्ते जुवरायावि १९४. उस राजा पद्मनाभ का सुनाभ नाम का पुत्र युवराज था। होत्था॥ १९५. तए णं से पउमनाभे राया अंतोअंतेउरंसि ओरोह-संपरिखुडे सीहासणवरगए विहरइ। १९५. वह राजा पद्मनाभ अपने अन्त:पुर के भीतर रनिवास से संपरिवृत हो प्रवर सिंहासन पर आसीन था। १९६. तए णं से कच्छुल्लनारए जेणेव अवरकंका रायहाणी जेणेव पउमनाभस्स भवणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पउमनाभस्स रण्णो भवर्णसि झत्ति-वेगेण समोवइए।। १९६. वह कच्छुल्ल नारद जहां अवरकंका राजधानी थी, जहां पद्मनाभ का भवन था, वहां आया। वहां आकर पूरे वेग के साथ राजा पद्मनाभ के भवन में उतरा। १९७. तए णं से पउमनाभे राया कच्छुल्लनारयं एज्जमाणं पासइ, १९७. राजा पद्मनाभ ने कच्छुल्ल नारद को आते हुए देखा। देखकर पासित्ता आसणाओ अब्भुढेइ, अब्भुढेत्ता अग्घेणं पज्जेणं आसणेणं आसन से उठा। उठकर उसे अर्ध्य, पद्य और आसन से उपनिमन्त्रित उवनिमतेइ॥ किया। १९८. तएणं से कच्छुल्लनारए उदगपरिफोसियाए दब्भोवरिपच्चत्युयाए भिसियाए निसीयइ, निसीइत्ता पउमनाभं रायं रज्जे यरडे य कोसे य कोट्ठागारे यबलेय वाहणे यपुरे अंतेउरेय कुसलोदंतं आपुच्छइ॥ १९८. वह कच्छुल्ल नारद जल-सिक्त डाभ पर बिछी वृषिका पर बैठा। बैठकर राजा पद्मनाभ से उसके राज्य, राष्ट्र, कोष, कोष्ठागार, बल, वाहन, पुर और अन्त:पुर के विषय में कुशल समाचार पूछे। १९९. तए णं से पउमनाभे राया नियगओरोहे जायविम्हए कच्छुल्लनारयं एवं वयासी--तुमं देवाणुप्पिया! बहूणि गामागरनगर-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंब-पट्टण-आसम-निगम-संबाहसण्णिवेसाई आहिंडसि, बहूण य राईसर-तलवर-माइंबियकोडुबिय-इन्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाह-पभिईणं गिहाई अणुपविससि, तं अत्थियाइं ते कहिचि देवाणुप्पिया! एरिसए ओरोहे दिठ्ठपुव्वे जारिसए णं मम ओरोहे? १९९. राजा पद्मनाभ ने अपने अन्त:पुर पर विस्मित होकर कच्छुल्त नारद से इस प्रकार कहा--देवानुप्रिय! तुम बहुत से ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्बट, द्रोणमुख, मडंब, पत्तन, आश्रम, निगम, संबाह, सन्निवेश आदि में घूमते हो और बहुत से राजा, ईश्वर, तलवर, माईबिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह आदि के घरों में प्रवेश करते हो अत: देवानुप्रिय! तुमने पहले कहीं पर मेरे जैसा अन्त:पुर देखा है? २००. तए णं से कच्छुल्लनारए पउमनाभेणं एवं वुत्ते समाणे ईसिं २००. राजा पद्मनाभ के ऐसा कहने पर कच्छुल्ल नारद थोड़ा मुस्कुराया। विहसियं करेइ, करेत्ता एवं वयासी--सरिसे णं तुमं पउमनाभा! मुस्कुराकर इस प्रकार कहा--पद्मनाभ! तू तो उस कूप-मंडूक जैसा तस्स अगडददुरस्स। केणं देवाणुप्पिया! से अगडददुरे? देवानुप्रिय! वह कूप-मण्डूक कौन सा है? पउमनाभा! से जहानामए अगडददुरे सिया। सेणं तत्थ पद्मनाभ! जैसे कोई कूप-मण्डूक हो, वह वहीं जन्मा हो, वहीं जाए तत्थेव वुड्ढे अण्णं अगडं वा तलागं वा दहं वा सरं वा सागरं बढ़ा हो और अन्य कूप, तालाब, द्रह, सर अथवा सागर उसने देखा वा अपासमाणे मण्णइ--अयं चेव अगडे वा तलागे वा दहे वा सरे न हो। वह मानता है-यही कूप है, तालाब है, द्रह है, सर है अथवा वा सागरे वा । तए णं तं कूवं अण्णे सामुद्दए दद्दुरे हव्वमागए। सागर है। तए णं से कूवदद्दुरे तं सामुद्दयं ददुरं एवं वयासी--से के तुम उस कूप में दूसरे समुद्र का मेंढक आ गया। देवाणुप्पिया! कत्तो वा इह हव्वमागए? वह कूप-मण्डूक समुद्र के मेंढ़क से इस प्रकार बोला--कौन हो तए णं से सामुद्दए ददुरे तं कूवददुरं एवं वयासी--एवं । तुम देवानुप्रिय! यहां कहां से आये हो? खलु देवाणुप्पिया! अहं सामुद्दए दद्दुरे। वह समुद्र का मेंढ़क कूप-मण्डूक से इस प्रकार बोला--देवानुप्रिय! मैं समुद्र का मेंढ़क हूँ। Jain Education Intemational ducation Intermational For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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