SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नायाधम्मकहाओ अणेगवायाम-जोग्ग-वग्गण-वामद्दण-मल्लजुद्धकरणेहि संते परिस्संते सयपागसहस्सपागेहिं सुगंधवरतेल्लमादिएहिं पीणणिज्जेहिं दीवणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं मयणिज्जेहिं विंहणिज्जेहिं सब्विंदियगायपल्हायणिज्जेहिं अब्भंगेहिं अब्भंगिए समाणे, तेल्लचम्मंसि पडिपुण्ण-पाणिपाय-सुकुमाल कोमलतलेहिं पुरिसेहिं छेएहिं दक्खेहिं पढेहिं कुसलेहिं मेहावीहिं निउणेहिं निउणसिप्पोवगएहिं जियपरिस्समेहिं अब्भंगण-परिमद्दणुव्वलणकरण-गुणनिम्माएहिं, अट्ठिसुहाए मंससुहाए तयासुहाए रोमसुहाए--चउन्विहाए संवाहणाए संवाहिए समाणे अवगयपरिस्समे नरिदे अट्टणसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता समत्तजालाभिरामे विचित्त-मणि-रयण-कोट्टिमतले रमणिज्जे ण्हाणमंडवंसि नाणामणिरयण-भत्तिचित्तंसि पहाणपीढंसि सुहनिसण्णे सुहोदएहिं गंधोदएहिं पुप्फोदएहिं सुद्धोदएहिं य पुणो पुणो कल्लाणगपवरमज्जणविहीए मज्जिए तत्थ कोउयसएहिं बहुविहेहिं कल्लाणगपवरमज्जणावसाणे पम्हल-सुकुमाल-गंधकासाइ-लूहियंगे अहय-सुमहाघ-दूसरयण-सुसंवुए सरस-सुरभि-गोसीसचंदणाणुलित्तगत्ते सुइमाला-वण्णगविलेवणे आविद्ध-मणिसुवण्णे कप्पिय-हारद्धहार-तिसरयपालब-पलबमाण-कडिसुत्त-सुकयसोहे पिणद्धगेकेज-अंगुलेज्जग-ललियंगय-ललियकयाभरणे नाणामणिकडग-तुडिय-थंभियभुए अहियरूवसस्सिरीए कुंडलुज्जोइयाणणे मउड-दित्तसिरए हारोत्थय-सुकय-रइयवच्छे मुद्दिया-पिंगलंगुलीए पालब-पलबमाण-सुकय-पडउत्तरिज्जे नाणामणिकणगरयणविमल-महरिह-निउणोविय-मिसिमिसिंत-विरइय-सुसिलिट्ठविसिट्ठ-लट्ठ-संठिय-पसत्थ-आविद्ध-वीरवलए, किं बहुणा? कप्परुक्खए चेव सुअलंकिय-विभूसिए नरिदे सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं चउचामरवालवीइयंगे मंगल-जयसद्द-कयालोए अणेगगणनायग-दंडनायग-राईसर-तलवरमांडबिय-कोडुंबिय-मंति-महामंति-गणग-दोवारिय-अमच्चचेड-पीढमद्द-नगर-निगम-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाह-दूयसंधिवालसद्धिं संपरिखडे धवलमहामेहनिग्गए विव गहगण-दिप्पंतरिक्खतारागणाण मज्झे ससि ब्व पियदसणे नरवई मज्जणघराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे॥ प्रथम अध्ययन : सूत्र २४ दिनकर, सूर्य के उत्थित तेज से देदीप्यमान होने पर राजा श्रेणिक शयनीय से उठा। उठकर जहां व्यायामशाला" थी, वहां आया। वहां आकर व्यायामशाला के अन्दर प्रवेश किया। नाना प्रकार के व्यायाम, शस्त्राभ्यास, कूर्दन, व्यामर्दन (आबनूस के बेलनों द्वारा की जाने वाली मालिश), मल्लयुद्ध और आसनों के द्वारा जब वह श्रान्त और परिश्रान्त हो गया, तब धातुसाम्य करने वाले, अग्नि-दीपन करने वाले, बल बढ़ाने वाले, वीर्य बढ़ाने वाले, मांस को पुष्ट करने वाले, सब इन्द्रियों और अवयवों को आल्हादित करने वाले, शतपाक, सहस्रपाक", आदि प्रवर सुगन्धित तैल तथा मर्दन-द्रव्यों के द्वारा अवसरज्ञ, दक्ष, अग्रणी, कुशल, मेधावी, निपुण, निपुण-शिल्प युक्त, परिश्रम से नहीं थकने वाले, अभ्यंग, परिमर्दन, उबटन और थपथपाने में अभ्यस्त तथा परिपूर्ण, सुकुमार और कोमल हाथ-पांवों के तलवों वाले पुरुषों द्वारा, तैल से स्निग्ध त्वचा वाले राजा श्रेणिक के लिए अस्थि-सुखद, मांस-सुखद, त्वचा-सुखद और रोम-सुखद-इन चारों प्रकारों के मर्दनों से मर्दन किया गया। थकान दूर होने पर वह राजा व्यायामशाला से बाहर निकला, जहां स्नानघर था, वहां आया आकर स्नानघर में प्रवेश किया। प्रवेश कर चारों ओर जालियों वाले, अभिराम, रंग-बिरंगे मणि-रत्नों से कुट्टित तल वाले, रमणीय, स्नान-मण्डप में नाना मणि-रत्नों की भांतों से चित्रित, स्नान-पीठ पर आराम से बैठ, शुभोदक, गन्धोदक, पुष्पोदक, और शुद्धोदक से कल्याणक प्रवर मज्जन-विधि से पुन: पुन: स्नान किया। सैंकड़ों प्रकार के कौतुक कर्म के साथ उसने कल्याणक, प्रवर स्नान-क्रिया को सम्पन्न किया। रोएंदार, सुकुमार, सुगन्धित, गेरुएं रंग के वस्त्र से अंग पोंछा। नये और बहुमूल्य दूष्यरत्न (बहुमूल्य वस्त्र) पहने। गात्र पर सरस, सुरभित गोशीर्ष-चन्दन का लेप किया। पवित्र मालाएं पहनी और चन्दन का विलेपन किया। मणिजटित स्वर्णाभरण पहने। हार, अर्धहार, त्रिसरा, झूमके तथा लटकती हुई करघनी से शरीर की शोभा को बढ़ाया। गले में ग्रैवेयक और अंगुलियों में अंगूठियां पहनी। अन्य भी अनेक प्रकार के आभूषणों से उसके ललित शरीर का लालित्य द्विगुणित हो गया। नाना मणि-जटित कड़े और बाहुरक्षक से भुजाएं स्तम्भित हो गयी। इस प्रकार वह अधिक रूप और शोभा-सम्पन्न हो गया। कानों में पहने हुए कुण्डलों से उसका मुंह उद्योतित हो रहा था। मुकुट से उसका मस्तक दीप्त हो रहा था। विविध प्रकार के हारों से आच्छादित उसका वक्षस्थल बहुत ही नयनाभिराम लग रहा था। मुद्रिकाओं से उसकी अंगुलिया पीली दिखाई दे रही थी। लम्बे, लटकते हुए उत्तरीय पट को भली-भांति ओढ़ा। नाना मणि, स्वर्ण और रत्न जटित, विमल, महामूल्य, निपुण शिल्पियों द्वारा परिकर्मित, देदीप्यमान सुविरचित, सुश्लिष्ट, विशिष्ट तथा कमनीय संस्थान वाले प्रशस्त वीरवलय को पहना। किं बहुना? वह नरेन्द्र कल्पवृक्ष की तरह अलंकृत और विभूषित हो गया। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy