SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 320
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उक्खेव पदं १. जइ णं भत्ते! समणं भगवया महावीरेणं चोद्दसमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते, पण्णरसमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्टे पण्णत्ते ? पण्णरसमं अज्झयणं पन्द्रहवां अध्ययन नंदीफले : नन्दीफल २. एवं खलु जंबू तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्या । पुण्णभद्दे चेइए। जियसत्तू राया ।। ३. तत्य णं चंपाए नयरीए धणे नामं सत्यवाहे होत्था -- अड्ढे जाव अपरिभूए ॥ ४. तीसे णं चंपाए नयरीए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए अहिच्छत्ता नाम नयरी होत्या -- रिद्धत्थिमिय- समिद्धा वण्णओ ।। ५. तत्य णं अहिच्छत्ताए नयरीए कणगकेऊ नामं राया होत्या--महा वण्णओ ॥ धणस्स घोसणा - पदं -- ६. तए णं तस्स धणस्स सत्यवाहस्स अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरतकालसमयंसि इमेयारूये अज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकपे समुप्पज्जित्था -- सेयं खलु मम विपुलं पणियभंडमायाए अहिच्छ नयरिं वाणिज्जाए गमित्तए एवं सपेहेड, सपेहेत्ता गणिमं च धरिमं च मेज्जं च पारिच्छेज्जं च-- चउव्विहं भंडं गेण्हइ, गेण्हित्ता सगडी - सागडं सज्जेइ, सज्जेत्ता सगडी-सागडं भरेइ, भरेत्ता कोडुबियपुरिसे सहावे सहावेत्ता एवं वयासी - गच्छह गं तुम्भे देवागुप्पिया! चंपाए नयरीए सिंघाडग जाव महापापहेतु (उग्घोसेमाणा - उग्घोसेमाणा ?) एवं वयह--एवं खलु देवाणुप्पिया! धणे सत्यवाहे विपुलं पणियं आदाय इच्छा अहिच्छतं नयरिं वाणिज्जा गमित्तए । तं जो णं देवाणुप्पिया! चरए वा चीरिए वा चम्मसंडिए वा भिच्छुडे वा पंडुरंगे वा गोयमे वा गोव्वतिए वा मिहिधम्मे वा धम्मचिंतए वा अविरुद्ध विरुद्धवुडसावग-रत्तप-निगंधप्यभिई पासंहत्थे वा निहत्थे वा घणेणं सत्यवाहेणं सद्धिं अहिच्छत्तं नयरिं गच्छइ, तस्स णं धणे सत्यवाहे अच्छत्तगस्स छत्तगं दलयइ, अणुवाहणस्स उवाहणाओ दलयइ, अकुंडियस्स कुडियं दतयद्द, अपत्ययणस्स पत्थयणं दलपद, Jain Education International --- - उत्क्षेप-पद १. भन्ते! यदि श्रमण भगवान महावीर ने ज्ञाता के चौदहवें अध्ययन का यह अर्थ प्रज्ञप्त किया है, तो भन्ते! उन्होंने ज्ञाता के पन्द्रहवें अध्ययन का क्या अर्थ प्रज्ञप्त किया है? २. जम्बू! उस काल और उस समय चम्पा नाम की नगरी थी । पूर्णभद्र चैत्य था । जितशत्रु राजा था । ३. उस चम्पा नगरी में धन नाम का सार्थवाह था -- आढ्य यावत् अपराजित । ४. उस चम्पा नगरी के ईशान कोण में अहिच्छत्रा नाम की नगरी थी । वह ऐक्यर्वशाली, शान्त और समृद्ध थी-वर्णन वाची आलापक। ५. उस अहिच्छत्रा नगरी में कनककेतु नाम का राजा था, वह महान था - वर्णन वाची आलापक । -- धन का घोषणा पद ६. एक बार मध्यरात्रि के समय धन सार्थवाह के मन में इस प्रकार का आन्तरिक चिन्तित, अभिलषित, मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ मे --मेरे लिए उचित है, मैं विपुल पण्यरूयाणक लेकर वाणिज्य के लिए अहिच्छत्रा नगरी जाऊं - उसने ऐसी सप्रेक्षा की। सप्रेक्षा कर गणनीय, धरणीय, मेय और परिच्छेद्य-रूप चतुर्विध क्रमाणक ग्रहण किया। ग्रहण कर छोटे-बड़े वाहन सज्जित किए। सज्जित कर छोटे-बड़े वाहन भरे । भर कर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा -- देवानुप्रियो ! तुम जाओ और चम्पानगरी के दोराहों यावत् राजमार्गों और मार्गों में बार-बार उद्घोषणा करते हुए? इस प्रकार कहो -- देवानुप्रियो ! धन सार्थवाह विपुल पण्य लेकर वाणिज्य के लिए अहिच्छत्रा नगरी जाना चाहता है। अतः जो भी चरक, चीरिक, चर्मखण्डिक, भिक्षाजीवी, पाण्डुरंग, गौतम, गौव्रतिक, गृहिधर्मा, धर्मचिन्तक, अविरुद्ध वैनयिक, विरुद्ध अक्रियावादी वृद्धश्रावक रक्तपट और निर्ग्रन्थ आदि सम्प्रदायों के पाषण्डी - व्रती अथवा गृहस्थ धन सार्थवाह के साथ अहिच्छत्रा नगरी जाएगा, तो धन सार्थवाह जिसके पास छत्र नहीं है, उसे छत्र देगा। जिसके पास जूते नहीं है, उसे जूते देगा। जिसके पास कुण्डिका नहीं है, उसे कुण्डिका For Private & Personal Use Only -- -- www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy