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________________ नायाधम्मकहाओ २८७ कट्टु एवंसपे सत्ता कगगज्जयं तेपलिपुत्ताओं विपरिणामेइ ।। ६४. तए णं तेयलिपुत्ते कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते व्हाए कयवलिकम्मे कयकोउय-मंगल- पायच्छिते आससंधवरगए बहूहिं पुरिसेहिं सद्धिं संपरिवुडे साओ गिहाओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव कणगज्झए राया तेणेव पहारेत्य गमगाए । ६५. तए णं तेयलिपुत्तं अमचं जे जहा बहवे राईसर - तलवर माविय- कोडुबियइम सेट्ठि सेणावद्द सत्यवाहपभियओ पासंति ते तव आढायंति परियाणंति अब्भुट्ठेति, अंजलिपग्गहं करेंति, इडाहिं कंताहिं जाव वग्गूहिं आलवमाणा व संलवमाणा व पुरजो यपिओ य पासओ य समणुगच्छति ।। ६६. तए णं से तेयलिपुते जेणेव कणगज्झए तेणेव उवागच्छइ ।। ६७. तए गं से कणाए तेयलिपुत्तं एज्जमाणं पास पासित्ता नो आढाए, नो परिमाणाइ, नो अम्भुद अगाठायमाणे अपरिमाणमाणे अणभुट्टेमाणे परम्मुहे संचिट्ठइ ।। ६८. तए गं से तेयलिपुते अमच्चे कणमज्झयस्स रन्गो अंजलि करे । तओ य णं से कणमज्झए राया अणाढायमाणे अपरियाणमाणे अणभुट्टेमाणे तुशिणीए परम्मुहे सचिइ ।। ६९. तए णं तेयलिपुत्ते कणगज्झयं रायं विप्परिणयं जाणित्ता भीए तत्थे तसिए उब्बिग्गे संजायभए एवं क्यासी णं मम कमाए राया। हीणे णं मम कणगज्झए राया। अवज्झाए णं मम कणगज्झए राया । तं न नज्जइ णं मम केणइ कुमारेण मारेहिइ ति कट्टु भीए तत्वे जाव सनियं-सणियं पच्चोसक्कछ, पच्चोसक्कित्ता तमेव आसखंधं दुरूहइ, दुरूहित्ता तेयलिपुरं मज्झमज्झेणं जेणेव सए गिहे तेणेव पहारेत्य गमणाए । ७०. तए णं तेयलिपुतं जे जहा ईसर जाव सत्यवाहपभियओ पासंति तहानो आढायंति नो परियाणंति नो अब्भुट्ठेति नो अंजलिपगहं करेंति, इट्ठाइं जाव वग्गूहिं नो आलवंति नो संलवंति नो पुरओ य पिओ य पासओ य समणुगच्छति ।। Jain Education International चौदहवां अध्ययन : सूत्र ६३-७० दूं- उसने ऐसी सप्रेक्षा की। सप्रेक्षा कर कनकध्वज को तेतलीपुत्र के प्रति विपरीत परिणाम वाला कर दिया। ६४. उषाकाल में पौ फटने पर यावत् सहस्ररश्मि दिनकर, तेज से जाज्वल्यमान सूर्य के कुछ ऊपर आ जाने पर तेतलीपुत्र स्नान, बलि कर्म और कौतुक मंगल रूप प्रायश्चित्त कर प्रवर अश्व स्कंध पर आरूढ़ हो, बहुत से पुरुषों के साथ उनसे परिवृत हो, अपने घर से निकला। निकलकर जहां कनकध्वज राजा था, वहां जाने का संकल्प किया। " ६५. अमात्य तेतलीपुत्र को बहुत से राजा, ईश्वर, तलवर, माडम्बिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति सार्थवाह प्रभृति अधिकारियों ने जैसे ही देखा वैसे ही उसका आदर किया, उसकी ओर ध्यान दिया, खड़े हुए हाथ जोड़े एवं प्रष्ट, कमनीय यावत् वचनों से आलाप संलाप करते हुए उसके आगे-पीछे, दाएं-बाएं, साथ-साथ चलने लगे । ६६. तेतलीपुत्र जहां राजा कनकध्वज था, वहां आया। ६७. कनकध्वज ने तेतलीपुत्र को आते हुए देखा। उसे देखकर न आदर दिया, न उसकी ओर ध्यान दिया और न वह खड़ा हुआ। वह उसे आदर न देता हुआ, उसकी ओर ध्यान न देता हुआ, खड़ा न होता हुआ, मुंह फेर कर बैठ गया । ६८. अमात्य तेतलीपुत्र ने राजा कनकध्वज को हाथ जोड़े, तो भी राजा कनकध्वज ने उसका न आदर किया, न उसकी ओर ध्यान दिया और न खड़ा हुआ। वह मुंह फेर कर मौन बैठा रहा। ६९. राजा कनकध्वज के विपरीत भावों को जानकर तेतलीपुत्र ने भीत `त्रस्त, तुषित, उद्विग्न और भयाक्रान्त होकर इस प्रकार कहा--राजा कनकध्वज मुझ से रुष्ट है। राजा कनकध्वज मुझे हीन मानने लगा है। राजा कनकध्वज मेरे प्रति दुश्चिन्तन करता है । नहीं, यह मुझे कैसी कुमौत मरवा दे ऐसा सोचकर वह भीत, जस्त हो यावत् वहां से धीरे-धीरे पीछे सरक गया। वहां से पीछे सरक कर उसने उसी अश्व-स्कन्ध पर आरोहण कर तेलीपुत्र के बीचोंबीच होता हुआ, जहां अपना घर था वहां जाने का संकल्प किया । ७०. तेलीपुत्र को ईश्वर यावत् सार्थवाह प्रभृति अधिकारियों ने जैसे ही देखा वैसे ही न उसको आदर दिया, न उसकी ओर ध्यान दिया, न खड़े हुए, न हाथ जोड़े और न इष्ट यावत् वचनों से आलाप-संलाप किया तथा न आगे-पीछे या दाएं-बाएं रह, उसका अनुगमन किया 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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