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________________ आमुख अनेकान्त का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है--परिणामवाद । जड़ व चेतन सभी में परिणमन होता है। परिणमन द्रव्य का अनिवार्य अंग है। सूक्ष्म दृष्टि से विचार करें तो प्रत्येक वस्तु में प्रतिक्षण परिणमन अथवा पर्यायान्तर गमन का सिद्धांत स्पष्ट होता है। स्थूल दृष्टि से विचार करें तो इष्ट वर्ण, गंध, रस, स्पर्श का अनिष्ट वर्ण आदि के रूप में तथा अनिष्ट वर्ण आदि का इष्ट वर्ण आदि के रूप में परिवर्तन होता रहता है। परिवर्तन स्वगत भी होता है और निमित्तों से भी होता है। वह स्वभाव से भी होता है और प्रयत्न से भी होता है। प्रस्तुत अध्ययन में प्रयत्नजन्य परिवर्तन के सिद्धान्त को एक सुन्दर उदाहरण के माध्यम से समझाया गया है। परिखा का जल वर्ण, गंध, रस और स्पर्श से अमनोज्ञ था। जिसकी गंध मृत सांप जैसी अथवा उससे भी अधिक अमनोगत थी। सुबुद्धि मंत्री ने प्रक्रिया विशेष के द्वारा उसे मनोज्ञ बना दिया। दुर्गंधयुक्त पानी भी पथ्य, निर्मल, आरोग्यवर्धक और बलवर्धक बन गया। वर्तमान युग में पानी को फिल्टर करने का प्रचलन है। फिल्टर किए गए पानी को स्वास्थ्य के लिए उत्तम माना गया है। प्राचीन काल में इसकी अपनी पूरी विधि थी। प्रस्तुत अध्ययन को उस विधि का निदर्शन माना जा सकता है। वृत्तिकार ने निगमन में एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण संकेत दिया है। जिस प्रकार मलिन जल को प्रयोग से निर्मल बनाया जा सकता है, उसी प्रकार गुरु विगुण को गुणवान बना देते हैं। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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