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आमुख
प्रस्तुत अध्ययन का नाम दावद्रव है। समुद्र के तट पर पैदा होने वाले दावद्रव वृक्षों के आधार पर इसका यह नाम दिया गया है ।
आराधक विराधक का प्रयोग सापेक्ष है स्वीकृत लक्ष्य की साधना करने वाला आराधक और उसकी साधना न करने वाला विराधक होता है।
प्रस्तुत अध्ययन का प्रतिपाद्य है मुनि के आराधक और विराधक जीवन का निरूपण आराधना और विराधना को पवन से प्रभावित दावद्रव वृक्ष के उदाहरण द्वारा समझाया गया है।
मोक्ष मार्ग की साधना का एक महत्त्वपूर्ण साधन है क्षमा तितिक्षा की भावना सामुदायिक जीवन में अनेक स्थितियों को सहन करना जरूरी होता है।
सहिष्णुता साधना की कसौटी है दूसरों को सहन करना सरल है स्वपक्ष को सहन करना बहुत कठिन है। यह एक मनोवैज्ञानिक और व्यावहारिक तथ्य है कि व्यक्ति जिन्हें अपना नहीं मानता उनके कटु वचनों को सहन कर लेता है और जिनको अपना मानता है उनके प्रतिकूल वचनों को सहन नहीं कर सकता। प्रस्तुत अध्ययन में यह सच्चाई बहुत ही सहजता और सरसता के साथ उजागर हुई है।
सहिष्णुता के आधार पर मुनि की चार श्रेणियां की गई हैं-
१. देश विराधक
२. देश आराधक
३. सर्व विराधक
४. सर्व आराधक
स्वपक्ष को सहन करता है । स्वपक्ष को सहन नहीं करता । स्वपक्ष को सहन नहीं करता । स्वपक्ष को सहन करता है।
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वृत्तिकार के अनुसार दावद्रव वृक्षों के समान मुनि है । द्वीप से उठने वाली हवाओं के समान स्वपक्षी - श्रमणों आदि के वचन हैं। सामुद्रिक हवाओं के समान परपक्षी - अन्यतीर्थिकों आदि के वचन हैं और कुसुम आदि की सम्पदा के समान मोक्ष मार्ग की आराधना है।
परपक्ष को सहन नहीं करता । परपक्ष को सहन करता है। परपक्ष को सहन नहीं करता । परपक्ष को सहन करता है।
प्रस्तुत अध्ययन जितना लघुकाय है उतना ही महत्त्वपूर्ण इसमें दृष्टांत के माध्यम से मुनि के तितिक्षा धर्म का बहुत ही सम्यक् और हृदयग्राही प्रतिपादन किया गया है।
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