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________________ आमुख धर्म के दो प्रमुख द्वार हैं--धृति और क्षान्ति। जो धृतिसम्पन्न होता है वही धर्म का पालन कर सकता है। प्रस्तुत अध्ययन धृति और क्षान्ति का जीवन्त निदर्शन है। राजकुमार मेघ ने भगवान महावीर की धर्मदेशना से प्रतिबुद्ध होकर श्रामण्य स्वीकार किया किन्तु धृति और क्षान्ति के अभाव में वह प्रव्रज्या को छोड़ने (उत्प्रवजित होने) के लिए तत्पर हो गया। भगवान महावीर सर्वज्ञ थे। उन्होंने मेघ की मन:स्थिति को पढ़ा, उसकी रात्रिकालीन परिस्थिति को जाना और सुदूर अतीत से उसका साक्षात्कार करवा दिया। भगवान महावीर ने मेघ के - पूर्ववर्ती दो जन्मों का ऐसा जीवन्त एवं प्रभावशाली चित्र उपस्थित किया कि उसे अपने दोनों जन्मों-सुमेरुप्रभ और मेरुप्रभ हाथी के जीवन की स्मृति हो गई। उसने जाना--मेरुप्रभ हाथी के भव में एक शशक की हत्या से बचने हेतु उसने ढाई दिन रात तक पैर को ऊंचा उठाए रखा। प्राणानुकम्पा से उठा (उत्क्षिप्त) वह चरण उसके परीतसंसारित्व एवं मनुष्य के आयुष्य-बंध का हेतु बना। 'उत्क्षिप्तचरण' की यही स्मृति उसके वर्तमान जीवन में भी संयम के स्थैर्य का हेतु बनी। अतएव इस अध्ययन का नाम उत्क्षिप्त रखा गया। ___आचारांग सूत्र में जातिस्मृति के तीन हेतुओं का प्रतिपादन हुआ है। प्रस्तुत अध्ययन में सुमेरुप्रभ के भव में होने वाली जातिस्मृति प्रथम 'सहसम्मुइयाए' हेतु का तथा मेघ के भव में भगवान के द्वारा करवाई जाने वाली स्मृति 'परवागरणेणं' का अच्छा निदर्शन है। प्रस्तुत अध्ययन में पंचविध आचार का सुन्दर प्रतिपादन हुआ है। जन्म मरण की परम्परा, भिन्न-भिन्न जन्मों में होने वाली घटनाओं का आवर्तन, असहिष्णुता के हेतुओं और उससे बचने में ज्ञान की भूमिका का इसमें सुन्दर निरूपण हुआ है। जातिस्मृति की प्रक्रिया देव आह्वान की पद्धति आदि परामनोविज्ञान की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं तो स्वप्न, दोहद, गर्भकाल में माता का आचरण आदि तथ्य गर्भविज्ञान को नई दिशा देने वाले हैं। सरस भाषा, सरस पदावली और सरस वाक्य रचना कथा साहित्य के अनुरूप है। यह ज्ञात है--जीवन्त घटना का निदर्शन है फिर भी इसमें कथा जैसी जीवन्तता उपलब्ध है। १. आयारो १/३ सहसम्मुइयाए, परवागरणेणं, अण्णेसिं वा अंतिए सोच्चा। २. नायाधम्मकहाओ १/१/१७०, १९० ३. वही १/१/५३ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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