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अष्टम अध्ययन : सूत्र २२६-२३३
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नायाधम्मकहाओ २२६. तेणं कालेणं तेणं समएणं सव्वदेवाणं आसणाइं चलेंति, समोसढा २२६. उस काल और उस समय सब देवों के आसन कम्पित हो गए।
धम्म सुणेति, सुणेत्ता जेणेव नंदीसरे दीवे तेणेव उवागच्छंति, उन्होंने समवसृत हो, धर्म को सुना। धर्म सुनकर, जहां नंदीश्वर द्वीप उवागच्छित्ता अट्ठाहियं महिमं करेंति, करेत्ता जामेव दिसिं पाउब्भूया था, वहां आए। वहां आकर अष्टाह्निक महिमा की। महिमा कर जिस तामेव दिसिं पडिगया। कुंभए वि निग्गच्छइ।।
दिशा से आए थे, उसी दिशा में चले गए। कुम्भ ने भी निष्क्रमण किया।
जियसत्तुपामोक्खाणं पव्वज्जा-पदं २२७. तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा. छप्पि रायाणो जेट्ठपुत्ते रज्जे ठावेत्ता पुरिससहस्सवाहिणीयाओ (सीयाओ?) दुरूढा (समाणा?) सव्विड्डीए जेणेव मल्ली अरहा तेणेव उवागच्छंति जाव पज्जुवासति ।
जितशत्रु प्रमुखों की प्रव्रज्या-पद २२७. जितशत्रु प्रमुख वे छहों राजा ज्येष्ठ पुत्रों को राज्य (सिंहासन) पर
स्थापित कर, हजार पुरुषों द्वारा वहन की जाने वाली (शिविकाओं पर?) आरूढ़ हो, सम्पूर्ण ऋद्धि के साथ, जहां अर्हत मल्ली थी, वहां आए यावत् पर्युपासना की।
२२८. तए णं मल्ली अरहा तीसे महइमहालियाए परिसाए, कुंभगस्स रणो, तेसिंच जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं धम्म परिकहेइ। परिसा जामेव दिसिं पाउन्भूया तामेव दिसिं पडिगया। कुंभए समणोवासए जाव पडिगए, पभावई य॥
२२८. अर्हत मल्ली ने उस सुविशाल परिषद् को, राजा कुम्भ को और जितशत्रु प्रमुख उन छहों राजाओं को धर्म का परिकथन किया। जन-समूह जिस दिशा से आया था, उसी दिशा में वापस चला गया। कुम्भ श्रमणोपासक बना यावत् वापस चला गया। प्रभावती भी श्राविका बनी।
२२९. तए णं जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो धम्म सोच्चा निसम्म
एवं वयासी--आलित्तए णं भंते! लोए, पलित्तए णं भंते! लोए, आलित्त-पलित्तए णं भंते! लोए जराए मरणेण य जाव पव्वइया जाव चोद्दसव्विणो। अणते वरनाणदंसणे केवले (समुप्पाडेत्ता तओ पच्छा?) सिद्धा॥
२२९. जितशत्रु प्रमुख छहों राजाओं ने धर्म सुनकर, अवधारण कर इस
प्रकार कहा-भन्ते! यह लोक जल रहा है। भन्ते! यह लोक प्रज्ज्वलित हो रहा है। भन्ते! यह लोक जरा और मृत्यु से जल रहा है, प्रज्ज्वलित हो रहा है यावत् वे प्रव्रजित हुए, यावत् चौदहपूर्वी बने। अनन्त प्रवर केवलज्ञान और दर्शन को (समुत्पादित कर तत्पश्चाद्?) सिद्ध हुए।
मल्लिस्स सिस्ससंपदा-पदं २३०. तए णं मल्ली अरहा सहस्संबवणाओ उज्जाणाओ निक्खमइ, निक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ।।
मल्ली की शिष्य-सम्पदा-पद २३०. अर्हत मल्ली ने सहस्राम्रवन उद्यान से निष्क्रमण किया। निष्क्रमण
कर बाहर जनपद विहार करने लगी।
२३१. अर्हत मल्ली के भिषक् प्रमुख अठाईस गण और अठाईस गणधर थे।
२३१. मल्लिस्स णं अरहओ भिसगपामोक्खा अट्ठावीसं गणा अट्ठावीसं
गणहरा होत्था॥
२३२. मल्लिस्स णं अरहओ चत्तालीसं समणसाहस्सीओ उक्कोसिया २३२. अर्हत मल्ली के चालीस हजार श्रमणों की उत्कृष्ट श्रमण-सम्पदा
समणसंपया होत्था, बंधुमइपामोक्खाओ पणपन्नं अज्जियासाहस्सीओ थी। बन्धुमती प्रमुख पचपन हजार आर्यिकाओं की उत्कृष्ट उक्कोसिया अज्जियासंपया होत्था, सावयाणं एगा सयसाहस्सी आर्यिका-सम्पदा थी। एक लाख चौरासी हजार श्रावक, तीन लाख चुलसीई सहस्सा, सावियाणं तिण्णि सयसाहस्सीओ पण्णढेि च पैंसठ हजार श्राविकाएं, छ: सौ चौदहपूर्वी, दो हजार अवधिज्ञानी, तीन सहस्सा, छस्सया चोद्दसपुव्वीणं, वीसं सया ओहिनाणीणं बत्तीसं हजार दो सौ केवलज्ञानी, तीन हजार पांच सौ वैक्रिय लब्धिधारी, आठ सया केवलनाणीणं, पणतीसंसया वेउब्बियाणं, अट्ठसया मणपज्जव- सौ मन:पर्यवज्ञानी, चौदह सौ वादी और दो हजार अनुत्तरोपपातिक नाणीणं, चोद्दससया वाईणं, वीसं सया अणुत्तरोववाइयाणं ।।
थे।
२३३. मल्लिस्स णं अरहओ दुविहा अंतकरभूमी होत्था, तं जहा-
जुगंतकरभूमी परियायतकरभूमी य। जाव वीसइमाओ पुरिसजुगाओ जुगंतकरभूमी दुवासपरियाए अंतमकासी।
२३३. अर्हत मल्ली के दो प्रकार की अन्तकर-भूमि" थी, जैसे-युगान्तकर
भूमि और पर्यायान्तकर-भूमि । बीसवें पुरुष-युग तक युगान्तकर-भूमि रही। पर्यायान्तकर भूमि उनकी केवलिपर्याय के दो वर्ष पश्चात् प्रारम्भ हुई।
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