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________________ १८० नायाधम्मकहाओ अष्टम अध्ययन : सूत्र १५-१८ १५. तए णं से महब्बले राया छप्पि य बालवयंसए पाउन्भूए पासइ, पासित्ता हट्ठतुढे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ जाव बलभद्दस्स अभिसेओ। जाव बलभदं रायं आपुच्छइ ।। १५. महाबल राजा ने उन छहों बाल-वयस्यों को उपस्थित हुए देखा। देखकर उसने हृष्ट तुष्ट हो कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया यावत् बलभद्र का अभिषेक किया। यावत् राजा बलभद्र से पूछा। महब्बलादीणं पव्वज्जा-पदं १६. तए णं से महब्बले छहिं बालवयंसगेहिं सद्धिं महया इड्डीए पव्वइए। एक्कारसंगवी । बहूहिं चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।। महाबल आदि की प्रव्रज्या-पद १६. महाबल छहों बाल-वयस्यों के साथ महान ऋद्धिपूर्वक प्रव्रजित हुआ। ग्यारह अंगों का ज्ञाता बना। वह बहुत सारे चतुर्थ-भक्त, षष्ठ-भक्त, अष्टम-भक्त, दशम-भक्त, द्वादश भक्त, मासिक और पाक्षिक तप से स्वयं को भावित करता हुआ विहार करने लगा। १७. तए णं तेसिं महब्ब्लपामोक्खाणं सत्तण्हं अणगाराणं अण्णया कयाइ एगयओ सहियाणं इमेयारूवे मिहोकहा-समुल्लावे समुप्पज्जित्था--जण्णं अहं देवाणुप्पिया! एगे तवोकम्म उवसंपज्जित्ता णं विहरइ, तण्णं अम्हेहिं सव्वेहिं तवोकम्म उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए त्ति कटु अण्णमण्णस्स एयमढें पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता बहूहिं चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं अप्पाणं भावेमाणा विहरति ।। १७. किसी समय एकत्र सम्मिलित उन महाबल प्रमुख सातों अनगारों के मध्य आपस में इस प्रकार का वार्तालाप हुआ--देवानुप्रियो! हम में से ___कोई एक जिस तप:कर्म को स्वीकार कर विहार करता है, हम सब उसी तप:कर्म को स्वीकार कर विहार करें--इस प्रकार उन्होंने एकदूसरे के इस प्रस्ताव को स्वीकार किया। स्वीकार कर बहुत सारे चतुर्थ-भक्त, षष्ठ-भक्त, अष्टम-भक्त, दशम-भक्त, द्वादश-भक्त, मासिक और पाक्षिक तप से स्वयं को भावित करते हुए विहार करने लगे। महब्बलस्स तवविसय-माया-पदं १८. तए णं से महब्बले अणगारे इमेणं कारणेणं इत्थिनामगोयं कम्मं निव्वत्तिंसु-जइ णं ते महब्बलवज्जा छ अणगारा चउत्थं उवसंपज्जित्ता णं विहरंति, तओ से महब्बले अणगारे छटुं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। जइणं ते महब्बलवज्जा छ अणगारा छटुं उवसंपज्जित्ता णं विहरंति, तओ से महब्बले अणगारे अट्ठमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। एवं अह अट्ठमं तो दसम, अह दसमं तो दुवालसमं । इमेहि य णं वीसाए णं कारणेहिं आसेवियबहुलीकएहिं तित्थयर-नामगोयं कम्मं निव्वत्तिंसु, तं जहा-- महाबल का तपोविषयक माया-पद १८. महाबल अनगार ने इस कारण से स्त्री नाम-गोत्र कर्म का का उपार्जन किया-महाबल के अतिरिक्त उन छह अनगारों ने यदि चतुर्थ-भक्त स्वीकार कर विहार किया तो महाबल अनगार षष्ठ-भक्त स्वीकार कर विहार करता। महाबल के अतिरिक्त वे छह अनगार यदि षष्ठ-भक्त स्वीकार कर विहार करते, तो वह महाबल अनगार अष्टम-भक्त स्वीकार कर विहार करता। इस प्रकार वे अष्टम-भक्त करते, तो वह दशम-भक्त करता। वे दशम-भक्त करते तो, वह द्वादश-भक्त करता। इन बीस कारणों से आसेवन और बहुलीकरण (अभ्यास करने । से और पुन: पुन: अभ्यास करने) से उसने तीर्थंकर नाम गोत्र कर्म का उपार्जन किया जैसे-- संगहणी-गाहा अरहंत-सिद्ध-पवयण-गुरु-थेर-बहुस्सुय-तवस्सीसु । वच्छल्लया य तेसिं, अभिक्ख नाणोवओगे य ।। दंसण-विणए आवस्सए य सीलव्वए निरइयारो। खणलवतवच्चियाए, वेयावच्चे समाहिए।।२।। अपुन्वनाणगहणे, सुयभत्ती पवयण-पहावणया। एएहि कारणेहिं, तित्थयरत्तं लहइ सो उ।।३।। वच्छन्त्या य लेखि, अभियन नाणोकझोप या संग्रहणी-गाथा १. अर्हत् २. सिद्ध ३. प्रवचन ४. गुरु ५. स्थविर ६. बहुश्रुत ७. तपस्वी-इनके प्रति वत्सलता, ८. अभीक्ष्ण--ज्ञानोपयोग ९. दर्शन १०. विनय ११. आवश्यक १२. शील (उत्तरगुण) और व्रतों (महाव्रत) का निरतिचार पालन १३. क्षण-लव मात्र भी प्रमाद न करना १४. तप १५. त्याग १६, वैयावृत्य १७. समाधि १८. अपूर्व-ज्ञान ग्रहण १९. श्रुतभक्ति २०. प्रवचन-प्रभावना--इन कारणों से उसने भी तीर्थंकरत्व को प्राप्त किया। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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