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________________ नायाधम्मकहाओ १६३ तित्तेसु कुहिएसु परिसडिएसु (से तुबे?) विमुक्कबंधणे अहे घरणियलमइवइत्ता उप्पिं सलिलतल-पइट्ठाणे भवइ। ___ एमामेव गोयमा! जीवा पाणाइवायवेरमणेणं जाव मिच्छादसणसल्ल-वेरमणेणं अणुपुव्वेणं अट्ठकम्मपगडीओ खवेत्ता गगणतलमुप्पइत्ता उप्पिं लोयग्ग-पइट्ठाणा भवंति। एवं खलु गोयमा! जीवा लहुयत्तं हव्वमागच्छंति।। छठा अध्ययन : सूत्र ४-५ प्राप्त होते हैं। गौतम! उस पहले मिट्टी के लेप के आर्द्र, कुथित और परिशटित हो जाने पर वह तुम्बा धरती के तल से कुछ ऊपर आ जाता है। तदनन्तर दूसरे मिट्टी के लेप के भी आर्द्र, कुथित और परिशटित हो जाने पर वह धरती के तल से कुछ (और) ऊपर आ जाता है। इस प्रकार इस उपाय से मिट्टी के उन आठों ही लेपों के आर्द्र, कुथित और परिशटित हो जाने पर (वह तुम्बा?) बन्धन मुक्त होकर धरती के निम्न तल का अतिक्रमण कर ऊपर पानी की सतह पर प्रतिष्ठित हो जाता है। गौतम! इसी प्रकार जीव प्राणातिपात विरमण यावत् मिथ्यादर्शनशल्य विरमण के कारण क्रमश: आठ कर्म प्रकृतियों को क्षीण कर गगनतल में उत्पात कर ऊपर लोकान में प्रतिष्ठित हो जाते हैं। गौतम! इस प्रकार जीव लघुता को प्राप्त होते हैं। निक्खेव-पदं ५. एवं खलु जंबू समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं छठुस्स नायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते। --त्ति बेमि॥ निक्षेप-पद ५. जम्बू! इस प्रकार धर्म के आदिकर्ता यावत् सिद्धिगति संप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने ज्ञाता के छठे अध्ययन का यह अर्थ प्रज्ञप्त किया --ऐसा मैं कहता हूँ। वृत्तिकृता समुद्धृता निगमनगाथा जह मिउलेवालित्तं, गुरुयं तुंबं अहो वयइ। एवं कय-कम्मगुरू, जीवा वच्चंति अहरगइं।।१।। वृत्तिकार द्वारा समुद्धत निगमनगाथा१. जैसे मिट्टी के लेप से उपलिप्त तुम्बा भारी होने से नीचे चला जाता है। वैसे ही कृतकर्मों से भारी हुए जीव अधोगति में जाते हैं। तं चेव तविमुक्कं, जलोवरिं ठाइ जाय-लहुभावं। जह तह कम्म-विमुक्का, लोयग्ग-पइट्ठिया होति ।।२।। २. जैसे वही तुम्बा मिट्टी के लेप से मुक्त हो हल्का होकर पानी की सतह पर आ जाता है, वैसे ही कर्ममुक्त जीव लोकान में प्रतिष्ठित हो जाते हैं। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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