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________________ आमुख लक्ष्य प्राप्ति की मुख्य बाधा है--इन्द्रिय एवं मन की चंचलता। जिस व्यक्ति का अपनी इन्द्रियों पर सम्यक् नियन्त्रण नहीं होता, प्रिय विषय के प्रति राग और अप्रिय विषय के प्रति द्वेष उसके मन की एकाग्रता को खण्डित करता रहता है। प्रस्तुत अध्ययन में कछुए के दृष्टान्त से इन्द्रिय गुप्ति से होने वाले लाभ और अगुप्तेन्द्रियता की हानि का हृदयग्राही निरूपण हुआ है। जैन, बौद्ध और वैदिक सभी धर्मग्रन्थों में इन्द्रियनिग्रह के लिए कूर्म का दृष्टान्त प्रसिद्ध है। तथागत बुद्ध ने साधक के लिए कूर्म का रूपक दिया है। सूत्रकृतांग सूत्र में भी इन्द्रियनिग्रह के लिए कर्म का दृष्टान्त उपलब्ध है। गीता में इन्द्रियनिग्रह को स्थितप्रज्ञता का लक्षण बताया गया है। मृतगंगातीर नामक द्रह में दो कछुए रहते थे। एक अपनी चंचलता के कारण अकाल-विनाश को प्राप्त हुआ। दूसरे ने अपने अंगों को संयत रखा। चिरकालीन कायगुप्ति के बाद धीरे से ग्रीवा निकालकर दिशावलोकन किया। सियारों की विपत्ति से अपने को मुक्त पाकर एक साथ चारों पैर निकाले और शीघ्रता से पुन: द्रह में जा पहुंचा। निष्कर्ष की भाषा में ग्रन्थकार कहते हैं-जो साधक जितेन्द्रिय होता है वह सभी प्रकार की ऐहिक और पारलौकिक विपत्तियों से मुक्त हो जाता है, चार तीर्थ की दृष्टि में वन्दनीय-पूजनीय होता है। इसके विपरीत जो इन्द्रिय नियन्त्रण में असफल हो जाता है, वह अपने साधना मार्ग से च्युत हो जाता है और शृगालों से ग्रस्त कूर्म की भांति अनेक अनर्थ परम्पराओं को प्राप्त होता है। १ सूग्रगड़ो १८१६--ज़द्रा कुम्मे सअंगाई, सए देहे समाहरे। एवं पावाइं मेहावी, अज्झप्पेण समाहरे।। २. श्रीमद्भगवद्गीता २/५८--यदा संहरते चायं, कूर्मोऽड्.गानीव सर्वशः । इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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