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३. तं जहा–माथिमिच्छदिट्ठिउववन्नए य, अमायिसम्म
दिट्ठिउववन्नए य । ४. तए णं से मायिमिच्छदिदिउववन्नए देवे तं अमायि
सम्मदिट्ठिउववन्नगं देवं एवं वयासी ५. परिणममाणा पोग्गला नो परिणया, अपरिणया,
६. परिणमंतीति पोग्गला नो परिणया, अपरिणया।
८. तए णं से अमायिसम्मदिदिउववन्नए देवे तं मायि
मिच्छदिट्ठिउववन्नगं देवं एवं वयासी ९. परिणममाणा पोग्गला परिणया, नो अपरिणया,
१०. परिणमंतीति पोग्गला परिणया, नो अपरिणया।
३. एक मिथ्यादृष्टिपणे, उपनो मायी तेह।
द्वितीय अमाई ऊपनो, ते समदृष्टिपणेह ।। ४. मायिमिच्छद्दिठी तदा, द्वितीय अमायी देव ।
समदृष्टि उत्पन्न प्रत, इम बोल्यो स्वयमेव ।। ५. पुद्गल परिणमता थका, नो परिणम्या कहाय ।
पिण परणमिया तेहनें, नहिं कहिजै मुझ न्याय ।। ६. वर्तमान अद्धा अने, काल अतीतज ताय ।
एह तणांज विरोध थी, नहिं परिणम्या कहाय ।। ७. परिणमै छै इम करि तिके, पुद्गल नो परिणम्याज । ___ अणपरिणमिया तेहने, कहिये इम वच साज ।। ८. अमायि समदृष्टि तब, जे सुर मायी जाण ।
मिथ्यादृष्टी ऊपनो, वदै तास प्रति वाण ।। ६. पुद्गल परिणमता थका, परिणमिया कहिवाय ।
पिण अणपरिणमिया तसु, नहिं कहिजै वर न्याय ।। १०. परिणमै छै इम करि तिके, पुद्गल परिणमियाज ।
पिण अणपरिणमिया तसु, कहिये नहीं समाज' ।।
वा०-परिणममाणा पोग्गला नो परिणया कहितां परिणमता छता पुद्गल नहीं परिणम्या वर्तमान अतीत काल-विरोध थकी। इण कारण थकीज कहै छैअपरिणया कहिता अपरिणम्यां छै इहाईज उपपत्ति ते युक्ति कहै छ-परिणमंतीति कहितां परिणमै छै इम करीनै पोग्गला नो परिणया ते पुद्गल नहीं परिणम्या ते माट अपरिणया कहितां अपरिणम्या कहिय ए मिथ्यादृष्टि नो वचन ।
वलि सम्यकदृष्टि कहै छै--परिणममाणा पोग्गला परिणया नो अपरिणया। परिणमता छता पुद्गल परिणम्या छ, पिण अपरिणम्या नथी, किण कारण इम का ? तेहगें न्याय कहै छ–परिणमंतीति कहितां परिणमै छ, इम करीनै पोग्गला परिणया कहितां परिणम्या छै ते माटे नो अपरिणया कहितां अपरिणम्या नथी परिणमंति कहितां परिणमै छै इम जे कहिये ते परिणाम नां सद्भाव थकीज कहिये अन्यथा अति प्रसंग हुवे ।
___ वली परिणाम सद्भाव नै विषे तो परिणमंतीति परिणमै छ इम व्यपदेश नै विष परिणतपणों अवश्यभावी छ । जो परिणम्ये छते पिण परिणतपणों न थाय तो सर्वदा ते परिणत नो अभाव प्रसंग हुवै । ११. मायी मिथ्यादृष्टि प्रति, एम हणी तिण ठाम ।
अवधि प्रजूंझी अवधि करि, मुझ ने दीठो ताम ।।
वा०–'परिणममाणा पोग्गला नो परिणय' त्ति वर्तमानातीतकालयोविरोधादत एवाह--'अपरिणय' त्ति, इहैवोपपत्तिमाह परिणमन्तीति कृत्वा नो परिणतास्ते व्यपदिश्यन्त इति मिथ्यादृष्टिवचनं । सम्यग्दृष्टिः पुनराह–'परिणममाणा पोग्गना परिणया नो अपरिणय' त्ति कुतः ? इत्याह-परिणमन्तीति कृत्वा पुद्गलाः परिणता नो अपरिणताः, परिणमन्तीति हि यदुच्यते तत्परिणामसद्भावे नान्यथाऽतिप्रसंगात। परिणामसद्भावे तु परिणमन्तीति व्यपदेशे परिणतत्वमवश्यंभावि, यदि हि परिणामे सत्यपि परिणतत्वं न स्यात्तदा सर्वदा तदभावप्रसंग इति ।
११. तं मायिमिच्छदिट्ठिउववन्नगं एवं पडिहणइ, पडिह
णित्ता मोहिं पउंजइ, पउंजित्ता ममं ओहिणा
आभोएइ, १२. आभोएत्ता अयमेयारूवे जाव (सं०पा०) समुप्प
ज्जित्था।
१२. मुझ ने देखी सुर तणं, एहवू तसु मन मांहि ।
यावत संकल्प ऊपनो, इम निश्चै करि ताहि ।।
१. प्रस्तुत ढाल की छह से दस तक पांच गाथाओं के निर्माण में वृत्ति को भी
आधार बनाया गया है। वृत्ति का वह अंश आगे वातिका के सामने उद्धृत किया है। इसलिए यहां केवल पाठ ही रखा गया है।
३६ भगवती जोड़
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