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________________ तीर्थकर पद १३. जंबूद्वीप प्रभु ! द्वीप विषे ए, भरत विषे अभिलाख्या । ए अवसप्पणी काल विषे जे, किता तीर्थंकर भाख्या ? १४. श्री जिन भाखे म्हे हम वाख्या तीर्थकर चउबीसं । ऋषभ अजित संभव अभिनंदन, सुमति सुप्रभ जगी || १५. वलि सुपार्श्व चंद्रप्रभ अष्टम नवमा जिन पुप्फदंत । शीतल ने श्रेयांस वासपूज्य, तेरम विमल अनंत ।। १६. पनरम धर्म सोलमां शांतिज, कंपू सतरमा जाने अर मल्लि मुनिसुव्रत नमि नेमि, पार्श्व अनं वर्द्धमानं ॥ सोरठा अड़ताल त्यां । १७. समवाअंग में ताम, भरत अतीत जिन नां नाम, वंदे १८. अनागत चउबीस, नाम कह्या वंदे पाठ न दीस, तिण सुं वंदन १९. आवस्सग रे मांय, लोगस्स में वंदे पाठ कहाय, ए पिण वच २०. म्है अभिस्तवना कीध कीर्त्या जोग्य नहीं ॥ चउवीस जिन । गणधर तणों ॥। वंचा पूजिया । ए गणधर बच सीध, तिणसुं वंदे पाठ है। २१. इहां भायो जगदीश, हे गोतम ! इण भरत में । तीर्थंकर चडवीस, ऋषभादिक मैं आविया || २२. अंत नाम वर्द्धमान, इहविध प्रभु पोते का तिण कारण पहिछान, वंदे गुण गाथा चउवीसी में वंदे पाठ ते नथी । वा०--- समवाअंग में अने लोगस्स में वर्त्तमान गणधर वचन जाणवो । अनैं इहां भगवती में गोतम पूछयो - प्रभु ! ! इण अवसप्पणी काल नैं विषे भरतक्षेत्र में केतला तीर्थंकर परूप्या ? जद भगवान कह्यो -चउवीस तीर्थंकर परूप्या । तेहनां नाम ऋषभादिक वर्द्धमान कह्या । ए महावीर स्वामी नुं वचन, ते मार्ट वंदे पाठ न कह्यो । २३. "हे प्रभु! प्यार बीस तीर्थकर, जिन अंतर तसु केता ? श्रीजिन भाले तीन बीस जे, छे जिन अंतर एता || कालिक श्रुत पद २४. ए तेबीस जिनांतर में प्रभु ! किसा जिन संबंधी न वेद । वलि किया जिन नां अंतर में कालिक सूत्र विच्छेद ? २५. जिन कहै एह तेबीस जिनांतरे, प्रथम चरम संवेद आठ-आठ जिन अंतर नैं विषे, एरवत क्षेत्र नां । आख्यो गणधरे ॥ २६. बिचला सात जिनवर ने विषे, *लय : रूडं चंद निहालै रे नव रंग ३५० भगवती जोड़ नहिं कालिक सूत्र विच्छेद || _इहां कालिक सूत्र नुं विच्छेद | सर्व तेवीस अंतर न विषे पिण, क्षय दृष्टिवाद नुं संवेद ।। Jain Education International १३. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए कति तित्थगरा पण्णत्ता ? १४. गोयमा ! चउवीसं तित्थगरा पण्णत्ता, तं जहाउस अजय-संभव-अभिनंदणमति-सुभ १५. सुपास-ससि पुप्फदंत सीयल सेज्जंस - वासुपुज्जविमल अत १६. धम्म अर-मस्तिमुणिमुब्वयनमि-मि पास- वद्धमाणा । १७. समदाओ – पइण्णगसमवाओ सू० २२२,२४८ १९. आवस्यं २।१ २३. एएसि णं भंते! चउवीसाए तित्थगराणं कति जिणंतरा पण्णत्ता ? गोयमा ! तेवीसं जिणंतरा पण्णत्ता । (श० २०1६८ ) २४. एएसि णं भंते! तेवीसाए जिणंतरेसु कस्स कहि कास्ति बोते ? २५. गोयमा ! एएसु णं तेवीसाए जिणंतरेस पुरिमपच्छिमएस अट्टसु अट्ठसु जिणंतरेसु एत्थ णं कालियसुयस्स अव्वोच्छेदे पण्णत्ते, २६. समिम सत्तए जिणंतरेषु एत्य णं कालियसुयस्स वोच्छेदे पण्णत्ते, सव्वत्थ वि णं वोच्छिष्णे दिट्टिवाए । ( श० २०१६९ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003621
Book TitleBhagavati Jod 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages422
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size21 MB
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