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१३. उरस्सबलसमण्णागया
१४,१५. तलजमलजुयल-परिघनिभवाहू
१६. लंघण-पवण १७. जइण""समत्था
१९. छेया
२०. दक्खा पत्तट्ठा
१२. मांस सहित छै हो अतिही पुष्ट,
वत्त वलित जिम हो खंध अदुष्टं' ।। १३. उर में उपनो हो बल अधिकारी,
ओछाह वीर्य हो अंतर भारी॥ १४. ताड वृक्ष जे हो जमल सम श्रेणी,
युगल सरल अति हो जिम तरु रैणी॥ १५. तदवत तेहनी हो सुंदर बाहु, पीवर पुष्टज हो सरल स्वभाउ ।। १६. लंघन कहियै हो उलंघन करिवै, ईषत गमने हो पगला धरवै ।। १७. जवन शीघ्र गति हो अति चालण में,
सामर्थ्यवंती हो विक्रम तन में ।। १८. कठिन वस्तु पिण हो चूर्ण करणी,
सुंदर साम्यर्थ हो तनु बल वरणी। १९. कला चउसठ नी हो जाण प्रवीणी,
अधिक अभ्यासज हो विद्या कीनी॥ २०. दक्ष कार्य में हो विलंब न करती,
पृष्टज वाग्मी हो विद्या धरती ।। २१. कुसल कहीजै हो सम्यक साची,
निज क्रिया नी हो जाणज जाची॥ २२. वलि मेधावी हो वच पूर्वापर, वचन मेलवा हो डाही सुंदर ।। २३. जाव शब्द में होए रव भाख्या, जीवाभिगमे हो देखी दाख्या। २४. पाठ व्यायामज हो ते नहिं कहिये,
तिणसं सूत्रे हो णवरं लहिये ।।
सोरठा २५. णवरं इतो विशेख, घन चमिष्टज आदि जे। ___व्यायाम क्रिया पेख, तसु उपकरण विशेष जे॥ २६. तिण करि कूटत गात, सम्यक प्रकार करि तसु।
घनीभूत आख्यात, गात्र अंग तेहने विषे । २७. एह तिहां आख्यात, तिके इहां कहिवा नथी।
एक विशेषण जात, स्त्रियां तणे नहिं संभवै ।।
२१. कुसला
२२. मेहावी
२५-२७. नवरं- चम्मेठ्ठ-दुहण-मुट्ठियसमाहयणिचियगत्तकाया न भण्णति,
(पा० टि० २) इह वर्णके 'चम्मेट्ठदुहणे' त्याद्यप्यधीतं तदिह न वाच्यं, एतस्य विशेषणस्य स्त्रिया असम्भवात्, अत एवाह'चम्मेद्वदुहणमुट्ठियसमाहयनिचियगत्तकाया न भन्नइ' त्ति, तत्र च चर्मेष्टकादीनि व्यायामक्रियायामुपकरणानि तैः समाहतानि व्यायामप्रवृत्तावत एव निचितानि च-घनीभूतानि गात्राणि- अङ्गानि यत्र स तथा तथाविधः कायो यस्याः सा तथेति,
(वृ०प०७६७)
२८. *एहवी कहिये हो चक्री दासी, पूर्वे आखी हो तेह विमासी ।। १. भगवती सूत्र में मूलतः इस सन्दर्भ में संक्षिप्त पाठ है । उसकी पूर्ति इसी
आगम के शतक १४।३ से की गई है । जयाचार्य ने यह जोड़ जीवाभिगम के आधार पर की है। उसके कुछ पाठ भगवती में नहीं हैं। इस कारण जोड़ के सामने पाठ उद्धृत नहीं किया गया। २. प्रस्तुत आगम में यह पाठ नहीं है। *लय : केसर वरणो हो काढ कसूबो म्हारा लाल
शै० १९, उ०३, ढा० ३९२ २१९
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