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१. अष्टादशशतवत्तिविहिता वृत्तानि वीक्ष्य वृत्तिकृताम् ।
(वृ०प० ७६१)
गीतक छन्द १. शत अष्टदशमे कह्य
विवरण सूत्र वृत्ती देखने । फुन उक्त मति श्रुत युक्ति
वारू प्रवर न्याय संपेख नैं ।। २. गणनाथ भिक्षु दीर्घमाल
नृपेंदु सुपसाये करी। वर जोड़ रचना रची
'जय गणी' अधिक ही उचरंग धरी ।।
श०१८, उ०१०, ढाल ३८९ २०१
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